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बुद्धि-विलास
[८३ दोहा : ग्यारह से चालीस के, साल' भये अभिराम ।
कुंडलपुर मै ऐक पट, माघचंद्र तसु नाम ॥६५८॥ ग्यारह से चालीस परि, च्यारि साल लै जांनि ।
तव तै भये मुनीस जे, तिनकौं सुनि दै कांनि ॥६५६॥ कवित्त : वृषभनंदि सिवनंदि विश्वचंद्र सिंहनंदि,
भावनंदि देवनंदि महा मुनिराज है। विद्याचंद्र सूरचंद्र माधनंदि ग्यांन कीत्ति.
गंगकीत्ति सिंघकोत्ति धर्म [के] जिहाज हैं। हाडोती के देस मांहि वार नगरी है तामैं,
वारापट भये ये सकल सिरताज है। कर जोरि तिनकौं नमत है वषतरांम,
गुरनि को मेरी भव-भव तनी लाज है ॥६६०॥ ग्यारहस नव-निवै तर्ण सालि हेमकोत्ति,
सुन्दरकीरति नेमिचंद अभिराम है। नाभिकीत्ति वहुरि नरिंद्रकोत्ति सिरीचंद,
पद्मनंदि वर्द्धमान भले गुन धाम हैं। अकलंकचंद्र औ ललितकीत्ति केसोचंद्र,
___ चारु अभै वसंतकीरति तीनौं नाम हैं। दुरग चीतोड' मांहि पट भए चौदह ऐ,
तिनकौं वषतरांम करत प्रनाम है ॥६६१॥ छंद: वारह सै-छयासठे साल पट प्रष्याति कीरति पायो।
सांतिकोत्ति फुनि धर्मचंद्र मुनि रत्नकीति जस छायो । प्रभाचंद्र लौं भये पांच पट ए अजमेरि वताये।
पद्मनंदि सुभचंद दोय मुनि दिल्ली मैं पट पाये ॥६६२॥ दोहा : पट्ट एक ग्वालेर मैं, भऐ मुनी जिरणचंद ।
पंद्रह-स-सतवोत्तर, मनहु उये निसि चंद ॥६६३॥
६५८ : १ सालि। ६६१ : १ चीतौड।
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