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________________ बुद्धि-विलास front चारिज बॅक हौ गुजरात मैं, तहां सर्व पंचनि मिलि ठांनी वात मैं ॥ ६१८ ॥ कोजे ऐक प्रतिष्ठा तो सुभ काज ह्र, करन लगे विधिवत सव ताकौ साज वै । भट्टारक बुलवाये सो पहुचे नहीं, तवें सर्व पंचनि मिलि यह ठांनी सही ॥६१६ ॥ सूरि मंत्र वाही प्रचारिज कौं दियो, पदमनंदि भट्टारक नांम सु यह ' कियौ । ताकै पाटि सकलकीरति मुनिवर भये, तिन समोधि गुजरात देस अपनें किये ॥ ६२०॥ विवेक । दोऊ मिलि के प्रधौं श्राधि गछ मैं लिये महाजन साधि ॥६२१॥ सव गुजरात वहुरि मालवे, फुनि मेवाड़ मांहि तिनुनवै । दिगंबरी इनकी मनाय, सो विधि अवलौं चाली जाय ॥६२२ ॥ दोहा : चौपाई : ग्यांनभूषरण ताकौ सिषि' ऐक, दूजौ यांनी Jain Education International पंद्रह से इकहतरे, निकस्यो गछ सिष्यि मुनी जिरणचंद कौ, सिंघकीत्ति ६२० : १ यहै । ६२१ : १ सिष्य । ६२६ : १ अजमेर । अथ मंडलाचार्य उतपति वर्नन पंद्रह से सुं वहैतरे, गछ थाप्यौ नागोर । रत्नकीति यह नांम भनि, निज वलवुधि के जोर ॥६२४ ॥ भट्टारक न कहावई, मंडलाचार्य कहाय । तिनकी वा दिसि मांहि वहु, फैलि गई श्रमनाय ॥ ६२५॥ फुनि सतरासे सत्तरे, थप्पौ पाट अजमेर | मंडलाचारिज दूसरो तामैं नांही इनहीं गछ मैं नीकस्यौ, नूतन तेरह सोलह-से-तीयासिये, सो सव जग ग्वालेर । गुरमेर ॥६२३॥ For Private & Personal Use Only [ ७e फेर ॥६२६॥ पंथ । जानंत ॥६२७॥ www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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