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________________ ७८ ] बुद्धि-विलास तव साहि वुलाये वै प्रधान, भाषी ले पाहु मुनी महांन ॥६१२॥ दरसन वेगम जव करें आप, तव ही वुनको मिटिहै' प्रताप । मिलि भाषी मुनि तै सवनि साह, तुम दरस वेगमनि के सु चाह ॥६१३॥ तातें हमरी विनती सु ऐहु, करि कै लँगोट दरसन सु देहु । मुनि कही सुनो तुम सकल साह, चलिजै यह जग मांझि (राह ॥६१४॥ साहन मिलि सव सौगॅद करीस, जुत वन मानिहैं हम मुनीस । तव ते यह राह चली विसेस, कछु वल वीरज प्राक्रम घटेस ॥६१५॥ छप्प : दिल्ली के पतिसाहि भये, पेरोजसाहि जव । चांदौसाह' प्रधान भटारक प्रभाचंद्र तव ॥ आए दिल्ली मांझि वाद जीते विद्यावर । साहि रोझि के कही कर दरसन अंतहपुर ॥ तिह समै लँगोट लिवाय फुनि चांदै विनती उच्चरी। मांनि हैं जती जुत वख हम सव. श्रावग सौगंद करी ॥६१६॥ अरिल : याही गछमैं भट्टारक जव वहु भये, वरष कितेक वितीने गछ निकसे नये । तिनमैं चलन वचन को भेद न जानियौं, निकसन की विधि लषी लिषी सो मानियौं ॥६१७॥ संवत तेरह से पिचिहतरयौ जांनिवे, भये भटारक प्रभाचंद्र गुनषांनि वै। ६१३ । १ मिटहैं। ६१६ । १ चांदोसाह। २. बिध्राबर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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