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बुद्धि-विलास तव साहि वुलाये वै प्रधान, भाषी ले पाहु मुनी महांन ॥६१२॥ दरसन वेगम जव करें आप, तव ही वुनको मिटिहै' प्रताप । मिलि भाषी मुनि तै सवनि साह, तुम दरस वेगमनि के सु चाह ॥६१३॥ तातें हमरी विनती सु ऐहु, करि कै लँगोट दरसन सु देहु । मुनि कही सुनो तुम सकल साह, चलिजै यह जग मांझि (राह ॥६१४॥ साहन मिलि सव सौगॅद करीस, जुत वन मानिहैं हम मुनीस । तव ते यह राह चली विसेस,
कछु वल वीरज प्राक्रम घटेस ॥६१५॥ छप्प : दिल्ली के पतिसाहि भये, पेरोजसाहि जव ।
चांदौसाह' प्रधान भटारक प्रभाचंद्र तव ॥ आए दिल्ली मांझि वाद जीते विद्यावर । साहि रोझि के कही कर दरसन अंतहपुर ॥ तिह समै लँगोट लिवाय फुनि चांदै विनती उच्चरी। मांनि हैं जती जुत वख हम सव. श्रावग सौगंद करी ॥६१६॥
अरिल :
याही गछमैं भट्टारक जव वहु भये,
वरष कितेक वितीने गछ निकसे नये । तिनमैं चलन वचन को भेद न जानियौं,
निकसन की विधि लषी लिषी सो मानियौं ॥६१७॥ संवत तेरह से पिचिहतरयौ जांनिवे,
भये भटारक प्रभाचंद्र गुनषांनि वै।
६१३ । १ मिटहैं। ६१६ । १ चांदोसाह। २. बिध्राबर ।
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