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________________ ५६३ : १ यक । ५६६ : १ फुनि । Jain Education International बुद्धि-विलास पापड़ीवाल, इक उपजी रसाल ॥५६२ ॥ दोऊ तिनकें चित कीजे इक' सुभ कारिज जु कोय, होय । दें आदि प्रतिष्ठा सुजस यह करि विचार इक नर મ बुलाय कढाय ॥५६३ ॥ मुहरत इक सुद्ध भलौ भट्टारक श्रीमत पठयो वसीठ तिन पैं भइया करीस, मुनि पासि जाय विनती चलि करहु प्रतिष्ठा हे मुनीस ॥५६४॥ दिनकौ वताय दीन्हों प्रमांण, सबही सुनि लीनी मुनि सुजांरग । दिन वीते वहु फुनि रहयौ एक, मुनि तैं नर विनति करो प्रतेक ॥ ५६५॥ मुनिराज श्रवैं मुहि सीष देहु, दिन रहयौ ऐक नांही कव चलि पहुचे वह ठांम तातें दीजे मुहि सीष दांन ॥ ५६६॥ मुनि कही अहो नर रहहु सोय, देषहु परभाति सु कहां होय । संदेहु । हांन, सोवत नर जब वह वढ्यौ प्रात, लषि दिल्ली श्रचिरज भयो गात ॥५६७॥ मुनि कही जाहु दिल्ली मकार, सांहें प्रधान प्रवार । निकट्ट, भायन श्रचिरज प्रगट्ट ॥ ५६८ ॥ सुषपाल साजि, लेंन काजि । नर प्रायहुं हूं सव कही भयो त्यावे गज हय रथ' पु. नि सव आये सांम्हें २ उपाय । ३ महूरत । २ रथ । प्रभाचंद्र, श्रमंद | For Private & Personal Use Only [ ७५ www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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