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________________ ७४ ] बुद्धि-विलास भये वड्ड पम जे जति राव। भयो सु भलो जस पुन्य प्रभाव ॥५८१॥ पुनः अन्योक्त' कुंदकुंद अमनांय मैं, भट्टारक जिरणचंद । दोहा : कछुयक तिनहू को सुजस, सुनिऐ भवि गुण वृंद ॥५८२॥ चौपई : यनपे' सवै महाजन आय, गढ चीतोड सु गये लिवाय। जहां धर्म धर फुनि बुधिवंत, सांगो रांणौं राज करत ॥५८३॥ तहां चौधरी हौ जिरणदास, सांगो तेजो द्वै सुत जास । साह गोत फुनि वौह' धनवान, तिन को राषत हे सव मांन ॥५८४॥ सांग इक दिन विनती करी, करहुँ प्रतिष्ठा मुनि गुन-भरी। मुनि प्राग्या माफिक धन लाय, सव सामिग्री' दई मगाय ॥५८५॥ तव अति हरष मांनि मुनिराज, करने लगे प्रतिष्ठा काज । दिवस कितेक करत जव भये, मुनि तौ तन तजि स्वर्गनि गये ॥५८६॥ तिनकै सिष्य पाट के जोग्य, हुतो न कोई महा मनोग्य । आयो हुतो प्रतिष्ठा जांनि, इक सुरजन पांड्यो' गुनषांनि ॥५८७॥ ताक संगि तिया हू हुती, गुन लांवन्य' करि अति सोभती। तिनतें सवै महाजन प्राय, विनती करी होहु मुनिराय ॥५८८॥ दोहा : ईंह स्वरजन श्रावक तने, हुतौ देवि को इष्ट । तात याकौं मानते, पंडितजन हूं सिष्ट ॥५८६॥ चौपई : सव मिलि ताहि भटारक करयो, प्रभाचंद्र नाम यह धरयो । अघ-तम-हरन उयो मनु सूर, वढ्यौ प्रताप सवै भरपूर ॥५६०॥ तिया हुती सिंह अजिकाकरी, 'करी प्रतिष्ठा तिनु गुन भरी। प्रभाचंद्र मुनि कहीं प्रकार, काहू दिसि कौं कियो विहार ॥५६१॥ छद पद्धरी : दिल्ली के पति पेरोजसाहि, चांदा गूजर परधान ताहि । ५८२ : १ अन्योक्ति। ५८३ : १ इन। २चीतौड। ५८४ : १ बहु । ५८५ : १ सामग्री। ५८७ : १ सुरजन पांडे । ५८८ : १. लांवनि । ५६१ : १ 'सोभित धर्म ध्यान गुन भरी।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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