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सोरठा :
अरिल :
बुद्धि-विलास
स्वरमुनि गये विदेह मैं, दरसरण किय जिनराय । ऊंची सव ही को लषी, धनुष पांच से काय ॥ ५६५॥ चक्रव्रत्ति आयो तहां, दरस करण जगदीस । लषि वन मुनि कौ हाथ में, लऐ उठाय महीस ॥५६६ ॥ भाषी यह को जीव है, कमड़ल पीछी धार । जिन भाषी मुनि है यहै, भरथषंड को सार ॥५६७॥ तव चक्रीयन कौ धरचौ, एलाचारिज नांम ।
फुनि प्राये निज क्षेत्र मैं करि मनवंछित कांम ॥ ५६८ ॥
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कवहू विनां प्रभात, सामायक लागे करन । समयै हुतों न भ्रात, तातें वांकी' ग्रींव हुव ॥५६६ ॥ तव ते नांम कहात, वक्रग्रोंव श्राचार्य यह । फुनि सुनिऐं यह वात, कुंदकुंद मुनि जिम भये ॥५७० ॥ कवहू वाद करत हे प्रांत मतीन तैं,
कमडल भरच लयौ जल वष्रण ' नवीन तैं । वादी जलकौं मंत्रनि तैं मदिरा करी,
पूछीया कमडल मैं मद तुम क्यों भरी ॥५७१ ॥ तव मुनिवर चक्रेस्वरि कौ सुमरन कियो,
देवि कुंद पुसपनि तैं कमडल भरि दियो । तव तैं लागे कहन मुनी कुंदकुंद है,
महिमां तिनकी जग मैं अधिक प्रमंद है ॥५७२ ॥ श्रमनाय इनकी मत मैं से भई,
सुनी वात कहियतु है मति जांनहु नई | काहू समये संघ चल्यो गिरनारि कौं,
कुंदकुंदमुनि वहुरि स्वेतपट लारकी ॥ ५७३ ॥ साथि दुहं मत के ही पंच भये घनें, पहुचे गिर तरि जाय सवै स भनें ।
५६६ : १ A वोकी । ५७१ : १ अन्य | ५७२ : १ चक्रेश्वरी ।
२ उष्म ।
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