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बुद्धि-विलास
[ ६६ अथ ज्यापनीय-संघ-उतपति' -वर्नन दोहा : साल सात से पांच कै, संघ चल्यौ अघ-धाम ।
पुर कल्यांनवर के विषै, ज्यापनीय यह नाम ॥५३३॥ तहां ऐक श्रीकलस मुनि, तिनहूं नये सिधंत । करि वातै जु धरि सु अव, कछुयक सुनौं व्रतंत ॥५३४॥ कलपसूत्र स्वेतांवरनु, नयो वरणायो ताहि ।
मांनौं' फुनि पूजा करो, रतन-त्रय को चाहि ॥५३५॥ सोरठा: मांने दुहुंके वैन, दिग्गंवर फुनि स्वेतपट ।
लहैं कौंन विधि चैन, जमीकौ न असमान कौ ॥५३६॥ फुनि यह कही असार, खी जाय पहुचै मुकति । ले केवली प्रहार, मोषि लहै सर गृथहू ॥५३७॥ वातें धरि विपरीत, और कितेक सिधांत मैं। संघ त्यागि निज रीति, ज्यापनीय परगट कियो ॥५३८॥
अथ काष्टा-संघ-उतपति वर्नन दोहा : संघ कासटा की भई, उतपति मनो उपंग ।
साल सात-सै-त्र्यारणवै, को निकस्यो यह संघ ॥५३६॥ चौपई : ग्राम नंदियड़ इक अति वस, विनयसेनि यक मुनि तें लसै।
ताकै चेलो कुमारसैन, भयो मुनी धारक मत्त जैन ॥५४०॥ तिय यक समये धरयो सन्यास, ज्यावत जीव सु ठांनि हुलास । वैठौ एक ठौर मुनिराय, सर्व वस्त को त्याग कराय ॥५४१॥ दिन कितेक मैं उपजी ताकौं, षुध्यादिक वाधा अति वाकौं। तव वन' नहि निज धर्म विचारयो, करि प्रहार सन्यास विगारयो ॥५४२॥
५३३ : १ उत्पत्ति । ५३५ : १ मानहु। ५४२ : १ उन।
The less popular sect of the Jalns, besides the well known Digambara and Svetambara Sanghas. Little research has so far been made on the Yapaniya literature. Dearth of material coupled with its close affinity with the Digamb ara sect. makes it still more difficult to differentiate between the two. However, Kanarese Jain works would come tofour aid, when they have been discovered and a proper assessment of the same has been made.
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