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२५] भारतीय विद्या
अनुपूर्ति [कृतीय इच्छा भी मेरे स्वास्थ्यको देख कर शान्तिनिकेतनके लिये उत्साहपूर्ण नहीं रही। तो भी३ वर्ष इस तरह वहां पूरे व्यतीत हुए।
शान्तिनिकेतनमें रहते भी मेरा मुख्य लक्ष्य तो "सिंघी जैन अन्धमाला" की प्रगति तरफ ही अधिक रहा करता था और उसीके संपादन-प्रकाशनमें मैं दिन प्रतिदिन व्यस्त रहता था। उस कार्यके लिये मुझे गुजरात ही सबसे अधिक अनुकूल था, इसलिये धीरे धीरे शान्तिनिकेतनसे अपना कार्य केन्द्र हठा कर अहमदाबाद या बम्बईमें रखनेका मैं सोचने लगा और तदनुसार कुछ व्यवस्था भी सोची जाने लगी।
केशरियाजी तीर्थक सम्बन्धमें श्रीशान्तिविजयजी महाराजका अनशन इन दिनों उदयपुर राज्यमें आये हुए केशरिया नामक तीर्थस्थानके विषय में एक
तरफ श्वेतांबर-दिगम्बरोंमें और दूसरी तरफ उदयपुर राज्यके साथ, जैनियोंका स्वत्वाधिकारके विषय में आपसी झगडा चल रहा था। आबू पहाड पर रहनेवाले और योगीराजके नामसे प्रसिद्ध श्रीशान्तिविजयजी महाराजने इस झगडेका निबटारा आपसी मेलमुलाकात द्वारा कराना चाहा और उसके निमित्त उन्होंने अनशम व्रत कर लिया। इससे जैन समाजमें - खास करके श्रीशान्तिविजयजी महाराजके भक्तों में बड़ी हलचल मच गई और उनमेंसे कई एक प्रमुख गिनेजाने वाले व्यक्ति उदयपुर पहुंचे। सिंधीजी भी श्रीशान्तिविजयजी महाराजके भत्तोंमेंसे एक विशिष्ट व्यक्ति थे। बुद्धि, समझदारी, साधनसंपन्नता आदि सभी तरहसे सिंघीजीका स्थान उन सब भक्तों में अग्रणीके जैसा था। इससे उनको भी उस समय उदयपुर पहुँचना पडा । वहाँकी सब परिस्थितिका निरीक्षण करते हुए उनको मालूम हुआ कि- केशरियाजी तीर्थका प्राचीन इतिहास अन्धकारके पडलमें दबा हुआ है। किसीको उसके स्वरूपकी ठीक जानकारी नहीं है। अर्द्धदग्ध और अनधिकारी लोगोंने उसके विषयों परस्पर विरोधी अनेक बातें प्रचलित कर रखी हैं और उससे समस्या अधिक जटिल हो रही है। सिंघीजीकी इच्छा हुई कि इस विषयमें वे मुझसे कुछ परामर्श करें और कुछ तथ्य ज्ञात करें। इस विचारसे ता. २२ -३ -३४ के दिन उदयपुरसे सिंधीजीने नीचे दिया हुआ पत्र मुझे लिखा और कुछ दिन उदयपुर मानेके लिये सूचित किया।
... "सविनय प्रणाम. श्रीकेशरियाजी तीर्थ व श्रीशान्तिविजयजी महाराजके अनशनके प्रसंग पर हमारा यहां आना हुआ। इसी प्रसंग पर हमारा अहमदाबाद जानेका भी थाऔर इसीलिये आपको तार भी किया था- मगर Circumstances change होने पर अहमदाबाद जाना बन्ध रखा। अब जैसा यहांका बनाव दिखता है उसमें इस तीर्थसंबन्धी कोई जांचकमिटी या Enquiry Commission मुकर्रर जरूर होगा और उसमें दोनों पार्टीको अपना अपना पुरावा दाखिल करना होगा। हमने सुना है कि श्रीकेशरियाजीके मन्दिर व उसके इर्दगिर्दमें कई लेख वेताम्बरी वा दिगम्बरियोंके हैं। कहा जाता है कि दिगम्बरियोंका लेख सबसे प्राचीन है। हमको यह निश्चय करना है कि हकीकतमें वे प्राचीन हैं या नहीं। सन तारीखसे वे प्राचीन हों भी तो लिपि प्राचीन है या नहीं। उनमें लिखित सन, तारीख, मिति, वार आपसमें मिलते हुए हैं या नहीं-याने जिस सन तारीखमें जो वार लिखा हुआ है, हकीकतमें उस रोज वही वार था या नहीं ? उसमें
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