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________________ २०६] भारतीय विद्या . [वर्ष ३ __ धम्म कयाण ववहरहु, पावतणी भंडसाल निवारहु । जीवह लोहु समग्गलउ, कुमारगि जणु जंतउ वारहु ॥ १८॥ एगिंदिय रे जीव सुणिजइ । वेइंदिय नवि आसा किजइ । तेइंदिय नवि संभलइ, चरिंदिय महिमंडलि वासु । पंचिंदिय तुहुं करहिं दय, जिणधम्मिहिं कज्जइ अहिलासु ॥१९॥ धम्मिहिं गय घड तुरियहं घट्ट । मयभिंभल कंचण कसवट्ट । धम्मिहिं सजण गुणपवर, धम्मिहिं रज रयण भंडार। धम्मफलिण सुकलत्त घरि, बे पक्खसुद्ध सीलसिंगार ॥२०॥ धम्मिहिं मुक्खसुक्ख पाविजइ । धम्मिहि भवसंसारु तरीजइ । धम्मिहि धणु कणु संपडइं, धम्मिहि कंचण आभरणाई । 'नालिय जीउ न जाणइ य, एहि धम्महं तणा फलाई ॥२१॥ धम्मिहि संपजइ सिणगारो । करि कंकण एकावलि हारु। धम्मि पटोला पहिरिजहिं, धम्मिहि सालि दालि घिउ घोलु। धम्मि फलिण वितसा [रु?] लियइं, धम्मिहिं पानबीड तंबोलु ॥२२॥ अरि जिय धम्म इक्कु परिपालहु । नरयबारि किवाडई तालहु । मणु चंचलु अविचलु वरहु, कोहु लोहु मय मोहु निवारहु । पंचबाण कामहिं जिणहु जिम, सुह सिद्धिमग्गु तुम्हि पावहु ॥२३॥ सिद्धिनामि सिद्धि वरसारु । एकाएकिं कहउ विचारु । चउरासी लक्ख जोणि, जीवह जो घल्लेसइ घाउ । अंतकालि संमरइ अंगि, कोइ तसु होइ हु दाहु ॥ ९४ ।। अरु जीवई अस्संखइ मारई । मारोमारि करइ मारावइ । मुच्छाविय धरणिहि पडइ, जीउ विणासिवि जीतउ मानइ । मच्छगिलिग्गिलि पुणु वि पुणु, दुःख सहइ ऊथलियइ पंनइ ॥२५॥ पन्नउ जउ जगु छन्न मनउं । कूवहं संसारिहि उप्पंनउं । पुन म सारिहि कलिजुगिहिं, ढीलइ जं लीजइ ववहारु । एकहं जीवहं कारणिण, सहसलक्ख जीवहं संहारु ॥ २६ ॥ वरिसा सउ आऊषउ लोए । असी वरिस नहु जीवइ कोइ । कूडी कलि आसिगु भणइ, दयाराजि नय नय अवतारु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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