________________
अंक १]
कवि आसिग कृत जीवद्या रास [२०७ धंमु चलिउ पाडलिय पुरे, एका कालु कलिहि संचारु ॥ २७ ॥ माय भणेविणु विणउ न कीजइ । वहिणि भणिवि पावडणु न कीजइ।
लहुड वडाई हा...तिय मुक्की, लाज स समुद मरजाद ।
घरघरिणिहिं वीया पियइं, पिय हत्थिं धोवावइ पाय ॥ २८ ॥ सासुव वहूव न चलणे लग्गइ । इह छाहइ पाडउणइ मागइ ।
ससुरा जिट्ठह नवि टलइ, राजि करती लाज न भावइ ।
मेलावइ साजण तणइं, सिरि. उग्घाडइ बाहिरि धावइ ॥२९॥ मित्तिहि मुक्का मित्ताचारि । एकहि घरणिहिं हुइ रखवाला।
जे साजण ते खेलत गिई, गोती कूका गोताचारा । हाणि विधि वट्ठावणइं, विहुरहि वार करहिं नहु सारा ॥ ३० ॥ कवि आसिग कलिअंतरु जोइ । एक समाण न दीसई कोइ।.
के नरि पाला परिभमहि, के गय तुरि चडंति सुखासणि ।
केई नर कठा वहहि, के नर वइसहिं रायसिंहासणि ॥ ३१ ॥ के नर सालि दालि भुजंता । घिय घलहलु मज्झे विलहंता ।
के नर भूषा(खा) दूषि(खि)यई, दीसहिं परघरि कंमु करता ।
जीवता वि मुया गणिय, अच्छहिं वाहिरि भूमि रुलंता ॥ ३२ ॥ के नर तंबोलु वि संमाणहिं । विविह भोय रमणिहिं सउ माणहि ।
के वि अपुंनइं वप्पुडई, अणु हुंतइ दोहला करंता। .. दाणु न दिनउ अंन भवि, ते नर परघर कंमु करंता ॥ ३३ ॥ आसेवंता जीव न जाणहिं । अप्पहिं अप्पाउ नहु परियाणहि ।
चंचलु जीविउ धूय मरणु, विहि विद्धाता वस इउ सीसइ ।
मूढ धम्मु परजालियइ, अजर अमरु कलि कोइ ना दीसइ ॥३४॥ नव निधान जसु हुंता वारि । सो बलिराय गयउ संसारि ।
बाहूबलि बलवंतु गउ, धण कण जोयण करहु म गारहु ।
डुबह घर पाणिउ भरिउ, पुहविहि गयउ सु हरिचंदु राउ ॥ ३५ ॥ गउ दसरथु गउ लक्खणु रामु । हियडइ धरउ म कोइ संविसाउ।
बार वरिस वणु सेवियउ, लंका राहवि किय संहारु । गइय स सीय महासइय, पिक्खहु इंदियालु संसारु ।। ३६ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org