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कवि असिग कृत जीवदया रास [ २०५ जणणि भणइ मई उयरहं धरियउ । वप्पु भणइ महु घरि अवतरियर । अणखाइय महिलिय भणइ, पातग तणई न मारगि जाउ ।
अरधु धरमु विहंचिवि लियउं वि, दिनत्थी पतुं घडसइ न्हाउँ ||९|| यउ चिंतिवि निय मणिहिं धरिज्जइ । कुडी साखि न कासु बि दिज्जइ । आलिं दि नइ आलस जड, अजु हूवर कालु न होसइ । अनुचित अनुहुइ, धंधइ पडियउ जीउ मरेसइ ॥ १० ॥ yes निपन जेम जलबिंदु | तिम संसारु असारु समुदु ।
इंदियालु नडपिखण्ड जिम, अंवरि जलु वरिसह मेहु । पंच दिवस मणि छोहलउ, तिम यहु प्रियतम सरिसर नेहु ॥ ११॥ अरि जिय परतहं पालि बंधिजइ । जीविय जोवण लाहउ लीजइ । अलिय कह विन बोलिजइ, सुद्धइ भाविहि दिज्जइ दाणु । धम्म सरोवर विमल जलु, कुंडपाउ नियमणि यउ जाणु ॥ १२ ॥ पंच दिवस होसइ तारुन्नु । ऊडइ देह जिम मंदिर सुन्नु । जाणतो विय जाणइ, दिक्खंता हई होइ पयाणउ ।
वगृहं संवलु नहु लय, आगइ जीव किसउ परिमाणु ॥ १३ ॥ दिवसे मासे पूजइ कालु । जीउ न छूटइ विरधु न वालु ।
छडउ पयाण जीव तुहु, साजणु मित्तु बोलावि वलेसइ । धम्मु परत्तह संवलओ, जंता सरिसउ तं जि वलेसइ ॥ १४ ॥ अरि जिय जइ ब्रूक्कहि ता बूक्कु । वलि वलि सीख कु दीसइ तूक्कु । वारि मसाणिहि चिय वलइ, कुडि दाएं ती गंधि न आवइ । पावकूव भिंतरि पडिउ तिणि, जिणधम्मु कियउ नवि भावइ ॥ १५ ॥ जिम कुंभारं घडियउ भंडू । तिम माणुसु कारिमउ करंडु |
करतारह निष्पाइयउ, अट्टुत्तरस वाहिसयाई ।
जिम पसुपालह खीरहरु, पुट्ठिहिं लग्गड हिंडइ ताई ॥ १६ ॥ देहा सरवर मज्झिहिं कमलु । तहि वइसर हंसा धुरि धवलो । कालु भमरु उपरि भ्रमइ, आउखए रस गंधु वि लेसइ । अखूटइ नहु जिउ मरइ, खूटा उपर घरी न दीसइ ॥ १७ ॥ नयर पुन आया वणिजारा । जणणि समाणु अरिहिं परिवारा |
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