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________________ भंक १] बुद्ध अने महावीरनुं निर्वाण [१८९ वगेरे मरीने चोथी नरके चालता थया. कूणिकना आ नास्तिक ओरमान भाइओना नरक प्रयाण- वर्णन करवू ए निरयावली सूत्रनो उद्देश छ; भने तेथी तेनुं एवं नाम आपवामां आव्युं छे. अहिं आगळ युद्धनी विगतो विषे विशेष सूचन कर्या सिवाय ते सूत्र अटकी जाय छे. १७. वैशालीने जीती लेवू उपर आपेलुं वर्णन चेटकनो पक्ष ले छे ए स्पष्ट छे. चेटके दश ओरमान भाइओने जीती लीधा एनो निर्देश ते करे छे पण चेटकनी अंतिम हार, अने वैशालीना पतन विषे ते चुप रहे छे. अर्थात् ते प्रसंग सुधी न जतां वच्चेथी अटकी जाय छे. पण आवश्यक कथानकमां वर्णवेली कुलवालयनी कथामांथी आपणने ए युद्धना अंतिम परिणामनी माहिती मळे छे.' एम कहेवाय छे के कूणिके वैशालीमा पडाव नाख्यो. त्या आकाशवाणी द्वारा नीचलो श्लोक संभळायो. शमणे जइ कूलवालए मागहिअं गणि रमिस्सए । राया य अशोगचन्दए वेशालिं नगरिं गहिस्सए । "ज्यारे भिक्षु कुलवालय मगधनी गणिका साथे रंगभोग भोगवशे त्यारे वैशाली शहेरने राजा अशोकचंद्र जीती लेशे." _आ श्लोकमां प्रथमाना एक वचननु रूप ए देखाय छे. तेथी ए बतावे छे के ते पुरातन होवो जोइए. कथाना विकास विषे ऊंडा उतरवानी ए श्लोकमां जरूर जोवाई नथी; पण तेनुं बीज तो ए श्लोकमां समायेलुं छे ज. भविष्यवाणी आखरे साची ठरे छे, अने अशोकचंद्र (कूणिक) वैशाली जीती ले छे. तेम करीने ए पोतानो निर्णय सफळ करे छे अने वृजिओनी भूमिने पोताना साम्राज्यमा जोडी दे छे. - अहीं भापणे एवा युगने अंते आवीए छीए के जेना इतिहास विषे बौद्ध आगमोमो कोई उल्लेख नथी मळतो; पण जैन आगमोमां केटलुक सूचन मळी आधे छे-अने ते साथे प्रमाणो पण पूरा पाडवामां आवे छे-जेथी जणाय छे के महावीर युद्ध करतां केटलांक (संभवतः सात) वर्षों विशेष जीव्या हता. त्यार पछीना नजीकना समयनी परिस्थिति उपर एक ढूंको दृष्टिपात नाखवो ए अहिं कदाच अस्थाने नहि लेखाय. वैशालीने जीती लीधा पछी मगधनो राजा चंपामां रहे ए अर्थहीन हतुं, तेथी कूणिकना अनुगामी उदायिने पोतार्नु रहेठाण फरीथी साम्राज्यना मध्यभागमा १ जुओ अभिधानराजेंद्र कोष, कुलवालय. २ आवश्यकचूर्णि अने अन्य स्थळोमां अशोकचंद्र ए कूणिकर्नु बिरुद (उपनाम) हतुं एम कहेवामां आव्युं छे. आ नाम लीधा सिवाय निरयावलीसूत्र (१२) कूणिकने ए नामे शामाटे बोलाववामां आवतो ते विषे आम जणावे छे-चेल्लणा एने एना जन्म पछी अशोकवृन्दमा मूकी दे छे. आथी आखं वृंद अद्भुत तेजथी झळहळी ऊठे छे अने तेथी श्रेणिक तेना तेजनी प्रेरणाथी पाछो तेने तेनी मा पासे लई जाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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