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अंक १]
कवि अब्दुल रहमानकृत सन्देशरासक [१६१ अने मूर्ख वञ्चेनुं अंतर समजे एवा महापंडितो छे, एओ माटे आ रास उपयुक्त नथी" (गाथा २०) परंतु “जेओ पंडित नथी तेम मूरख पण नथी एओ माटे आ रास छे. माटे आ रास एवा वचगाळाना लोको सामे गावो" एवी भलामण २श्मी गाथामां करे छे. प्रथम प्रक्रमनी छेल्ली बे डुमिला छंदमां रचेली कडीओमा (२२मी अने २३मी) कवि रासकार, पोताना रासने मूलवे छे. ते कहे छे : आ रास, अनुरागिओ माटे 'रतिगृह' छे, कामुको माटे 'मनहर' छे, मदनमनस्को माटे 'मार्गदर्शक दीप' छे, विरहिणीओ माटे 'मकरध्वज' छे अने रसिक जनो माटे 'संजीवक रस' छे - कानने अमृत जेवो मीठो छे तथा अतिस्नेहपूर्वक कहेवामां आव्यो छे. आटलं कही रासकार प्रथम प्रक्रमने पूरो करे छे. , बीजो प्रक्रम १०६ पद्योमा छे. तेनो आरंभ गा० २४थी, अने अंत १२९मी गाथाथी थाय छे. मा प्रक्रमना आरंभमाज रासकार 'विजयनयर'नो उल्लेख करी त्यांनी विरहिणी नायिकानुं विरहावस्थानुं चित्र खडं करवा साथे तेणीए 'पथिकने जोयो' 'तेणीनी संदेशो देवानी उत्कंठा विशेष वधी' अने 'पथिकने जोईने संदेशो आपवानी उतावळमां तेना केवा केवा हालहवाल थया', 'उतावळथी संदेशो आपवा जतां तेणीनो कंदोरो छूटी गयो, एने गांठवाळी ठीक कर्यो त्यो हार तुटी गयो, हारने समो कों त्यो पगनां झांझर साथे अफळातां पोते ज पडी गई, मांड ऊभी थई त्या ओढणुं खसी गयु, तेने सर कयु त्यां कांचळी फाटी गई, कमळोवडे जेम कनककलश ढंकाय तेम हाथवडे छांती ढांकी मांड मांड तेणी पथिकनी पासे पहोंची अने तेने क्षणवार उभो रहेवानुं भने पोतानुं बोल सांभळवार्नु जणाव्यु'-ए बधुं वर्णव्यु छे. (गा० २४ थी गा०३०) पछी ते पथिक आ नायिकाने जोतां ज थंभी गयो- एक पगलुं आगळ वा एक पगलुं पाछळ ते चाली ज न शक्यो. चाळीशमी गाथा सुधी पथिके जोएली ए विरहिणीना सौंदर्यनुं माथीथी पग सुधी वर्णन कयु छे. ए पथिक कहे छे के 'आ वौमानो रचनार प्रजापति का तो आंधळो छे अथवा व्यंडल (वियड्डलु) छे-तृतीयप्रकृति छे. नहीं तो आवी वामाने सरजी ते पोतानी पासे ज न राखे.' ४०मी गाथामां ए पथिक कहे छे के, "कविओ पोतानी कृतिमा पुनरुक्ति दोष करे छे तेथी तेओ दोषपात्र नथी. कारण के पुनरुक्ति तो सरजनहारे पण करी छ: सरजनहारे पहेलां शैलजानेपार्वतीजीने सरज्यां अने त्यारबाद तेना जेवी ज आ वामाने सरजी, ए सरजनहारनी पुनरुक्ति ज छे.' संदेशो आपवा आवेली ए नायिका पथिकने पूछे छे के 'हे पथिक !
११ “विजयनयरहु कावि वररमणि" इत्यादि (गा० २४थी )
१२ देवोनी स्त्री-देवी नुं वर्णन माथाथी आरंभाय छ एम टिप्पनक अने अवचूरिका बन्नेमां लखेलुं छे. माटे ज प्रस्तुत रासकारे आ रासमां स्त्रीचं वर्णन माथाथी आरंभ्युं छे. १३ "किं नु पयावइ अंधलउ अहवि वियट्ठलु आहि ।
जिणि एरिसि तिय णिम्मविय ठविय न अप्पह पाहि ॥" (पृ०१५) "सयलज्ज सिरेविणु पयडियाई अंगाई तीय सविसेसं ।
को कवियणाण दूसइ सिटुं विहिणा वि पुणरुत्तं ॥” (गा०४० पृ०१७) ३.१.२१.
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