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________________ १६०] भारतीय विद्या [वर्ष ३ "शिक्षित तरुणी भरते बतावेली भावभंगिओ द्वारा नाच करे एटले गामडियण नारी ताळीओ पाडी झुं नाचवू छोडी दे?" "क्यांय खीरना ऊकळवानो अवाज आवे एथी झुं हांडलीमा पाकती कुराकानी राबडी पोतानो 'खदखद' अवाज न करे?" छेक छल्ले ए रासकार कहे छे के, "चतुर्मुखे कडुं छे एटले शुं वीजा कोई न कहे ?" तेथी खरी वात तो ए कहे छे के "जेनी- जेटली काव्यशक्ति होय तेणे शरमाया विना पोतानी ए शक्तिने प्रगट करी देवी". अने आ दृष्टिए ज रासकार पोते काव्य करवा तत्पर थयो छे. तेम छतां प्रस्तुत रास ए कोई राबडी नथी किंतु मिष्टरसपूर्ण सुगंधित क्षीर छे, ए वात नक्कर सत्य छे, ए ध्यान बहार न रहे. रासकार भरतनाट्य शास्त्रनो पण पंडित छे अने रसिक छे ए तेणे ऊपर लख्या प्रमाणे 'भरत' नो निर्देश करतां सूचवेलुं छे. रासकारे सत्तरमी गाथामा छेक छेल्ले 'चतुर्मुख' ना नामनो उल्लेख को छे. टिप्पनकार अने' अवचूरिकाकार ए बन्ने 'चतुर्मुख' नो अर्थ 'ब्रह्मा' करे छे अने "ब्रह्माए वेदो कर्या एटले हवे शें कोईए कोई रचना न करवी?” एनो अर्थ समझावे छे. परंतु आ 'रास' जोतां रासकारे प्रस्तुतमां 'चतुर्मुख' शब्दद्वारा 'ब्रह्मा'ने याद कर्यो होय एम नथी लागतुं; किंतु अपभ्रंशभाषानो विशिष्ट कवि महापंडित 'चतुर्मुखस्वयंभू' नामे जे प्रसिद्ध 'जैन कवि' थयेलो छे, अने जेनुं काव्य विशेष रसाळ अने विदग्धजन-मोहक छे तेथी रासकारे ए कविने अहीं याद कर्यो होय एवी संभावना थाय छे. वेदना प्रणेता ब्रह्मा अने प्रस्तुत कवि एबे वच्चे विशेष अंतर पडी जाय छे– 'ब्रह्मा' ए ईश्वररूप छे अने प्रस्तुत रासकार 'मानव' छे, एथी ए बे वच्चे समोवडनो संभव नथी. कविओ जे रीते पोताना समोवडिया कविओने संभारे छे ए जोतां आ रासकारे 'चउमुह' शब्दद्वारा ए सुप्रसिद्ध महाकवि 'चतुर्मुख'ने संभार्यो होय ए सुघटित छे. पोतानी लघुता बतावतां रासकारे पोताने श्रुति-रहित' कहेलो छे एथी कदाच एम जणाय छे के रासकारने वेदोनो विशेष ऊंडो परिचय न होय. अढारमी, ओगणीशमी अने वीशमी गाथाओमारासकार, महाकविओनी पासे पोते 'मूर्ख छ' एम जणावी पछी “पोते मूर्खे करेल आ रासने स्नेह करीने बुध जनो पण सांभळे" एबुं बुधजनोने निमंत्रण आपे छे अने साथे पोतानी जात 'कौलिक'नी एटले 'तंतुवायनी-वणकरनी छे' ए हकीकत पण लघुता दर्शाववा माटे बतावे छे. आ स्थले रासन नाम 'संनेहरासउ' एम सूचवेलुं छे. "जेओ पंडित "जा जस्स कव्वसत्ती सा तेण अलजिरेण भणियव्वा ॥” (पृ०६) "जइ चउमुहेण भणियं ता सेसा मा भणिजंतु ॥ १७॥" 'चतुर्मुख' नामे एक महाकवि थयेलो छे. जेणे विशेषे करीने अपभ्रंश भाषामा मनोहर रचना करेली छे. तेनो समय सुनिर्णीत नथी तो पण अगीयारमा सैकामां महापुराणनी समाप्ति करनारा महाकवि पुष्पदंते 'चतुर्मुख'ने ग्रंथारंभे याद करेलो छे एटले 'चतुर्मुख'नो समय अगीयारमा सैकाथी पूर्वे छे ए चोकस. परंतु केटलुं पूर्वे ए हजु निर्णीत नथी. आ संबंधे विद्याविलासी पं० नाथूरामजी प्रेमी रचित 'जैनसाहित्य और इतिहास' (पृ. ३७१) अवश्य जोवो जोईए. १० जुओ टिप्पण ७ मुं, त्या गाथामा रासकारे पोताने 'श्रुति' रहित जणावेलो छे. 'श्रुति' ए वेदनु नाम छे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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