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अंक १]
कवि अब्दुल रहमानकृत सन्देशरासक [१५९ कर्यु छे. पांचमी अने छट्ठी गाथामा पूर्वना छेकोने- पंडितोने अने शब्दशास्त्रकुशल सुकविओने संभार्या छे. अवहट्टये - अपभ्रष्टक, संस्कृत, प्राकृत अने पैशाची भाषामां जेओए रचना करी कवित्वने भूषित कर्यु छे तेमने याद कर्या छे. पांचमी गाथा द्वारा पूर्वना पंडितोने साधारणपणे संभारी छट्ठी गाथामा भाषाविशेषना कविओने याद कर्या छे; परंतु कोई पंडित के कविने विशेष नाम लईने याद कर्या नथी. वळी भाषाओमां पण संस्कृत, प्राकृत, पैशाची अने अपभ्रंश ए चारने ज याद करेली छे. संभव छे के मागधी वा शौरसेनीमां महाकाव्योनी विपुलतान होवाथी,-महाकवि राजशेखरनी बे एक कृतिओ (कर्पूरमंजरी अने रंभामंजरी) शौरसेनीनी कृतिओ गणाय, छतां ते महाकाव्य मथी अने मागधीमांतो कोई कविए कविता-विशिष्ट कविता-करी नथी-एथी रासकारे शौरसेनी अने मागधीनो उल्लेख नहि कर्यो होय ए उचित ज छे. वळी, ए भाषाओना उल्लेख ऊपरथी रासकार कविनो ते चारे भाषाना साहित्यनो विशिष्ट परिचय अने पांडित्य पण व्यक्त थाय छे. रासकार पोते प्राकृत गीतो रचवामा विशेष निपुण छे एम ए जाते ज जगावे छे अने ए सर्वथा यथार्थ छे. सातमी गाथामां पोतानी लघुता बताववानी सूचना छे : ए कहे छे के एवा मोटा मोटा कविओनी पाछळ श्रुति अने शब्दशास्त्र रहित अमारा जेवानुं व्याकरण अने छंदोथी वेगळु एवं कुकवित्व कोण वखाणशे? छतां कोई वखाणे के न वखाणे तो य अमे तो अमारुं कर्तव्य बजाववाना ज छिए. आ हकीकत, आठमीथी सत्तरमी गाथा सुधी रासकारे विशिष्ट अने मनोरंजक ओठां आपीने सरसरीते रजु करी छे. ते कहे छे के "चंद्र जगे एटले शें दीवो पोते न प्रकाशे ?” "कोयल बोले एथी शुं कागडा चूप थई जाय" "गंगा वहे एथी शुं बीजी नदीओ बहेती अटकी जाय ?" "कमलिनी खीले तेथी शुं वाड ऊपर तुंबडी न खीले ?"
४ केवल अवचूरिकाकारे पंडित अने कवि वच्चे अंतर बतावनाएं मयूरमहाकविन वाक्य आ प्रमाणे नोंड्युं छेः
"तूर्णमानीयतां चूण पूर्णचन्द्रनिभानने !।
कवये बाणभट्टाय पण्डिताय च दण्डिने ॥" टिप्पनकारना मत प्रमाणे कविओ कर्ता छे अने पंडितो संशोधको छे. (पृ. ३)
"अवहट्टय - सकय - पाइयम्मि पेसाइयम्मि भासाए । लक्खण - छंदाहरणे सुकइत्तं भूसियं जेहिं ॥” (पृ.३) "तह तणओ कुलकमलो पाइयकव्वेसु गीयविसयेसु ।
अद्दहमाणपसिद्धो स्नेहयरासयं रइयं ॥ (पृ०३) आ गाथाना पूर्वार्धना बीजा चरणनो अर्थ अवचूरिकाकार रिप्पनकार करतां बीजी रीते करे छे. “प्राकृतकाव्ये गीतविषयेषु भोगेषु च" अर्थात् आ रासकार, प्राकृतगीतोमां अने विषयो एटले भोगोमा अर्थात् कामसूत्र वगेरे शास्त्रोमां विशेष निपुण हतो. ७ "ताणऽणु कईण अम्हारिसाण सुइ - सद्दसत्थरहियाण ।
लक्खण-छेदपमुकं कुकवित्तं को पसंसेइ ॥ ७॥” अनुक्रमे गा० ८-९-१३-१४-१५-१६-१७. आ सिवाय वच्चे आवेली १०११-१२ गाथाओमां पण एवाज उदाहरणो साथै उक्त एकज आशय बतावेलो छे.
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