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१५८] भारतीय विद्या
[ वर्ष ३ चञ्चरिहि गेउ झुणि करिवि तालु, नच्चीयइ अउच्च वसंतकालु।। घण निविडहार परिखिल्लरीहि, रुणझुण रउ मेहलकिंकिणीहि ॥२१९ गजति तरुणि णवजुधणीहि, सुणि पढिय गाह पिअकंखिरीहि ॥२२० एआरिसंमि समए घणदिणरहसोयरंमि लोयंमि। अञ्चहियं मह हियए कंदप्पो खिवइ सरजालं ॥२२१ जइ अणक्खरु कहिउ मइ पहिय, घणदुक्खाउन्नियह मयणअग्गि विरहिण पलित्तिहि । तं फरसउ मिल्हि तुह विणयमग्गि पभणिज झत्तिहि । तिम जंपिय जिम कुवइ णहु तं पभणिय जं जुत्तु । आसीसिवि वरकामिणिहि वहाऊ पडिउत्तु ॥ २२२ जं पहुंजिवि चलिय दीहच्छि अइ तुरिया, इत्थंतरिय दिसि दक्षिण तिणि जाम दरिसिय, आसन्न पहावरिट दिटु णाहुतिणि झत्ति हरासिय । जेम अचिंतिउ कजु तसु सिद्ध खणद्धि महंतु। तेम पढंत सुणतयह जयउ अणाइ अणंतु ॥ २२३
रासकारे संदेश रासकमां ब्रण प्रक्रम कल्पेला छे. ए प्रक्रमोनु कोई विशेष (३) नाम नथी आप्यु. मात्र टिप्पनकरूप-वृत्तिकार एक बीजा प्रक्रमनुज रासनो रच- 'संदेशप्रदान' एवं नाम आपे छे. प्रथम प्रक्रममा २३ पयो छे, ते पयो नाक्रम अने विपुला गाथा, रड्ड, पद्धडी अने डुमिला वगेरे जुदा जुदा छंदोमां रचेला तेनुं वस्तु छे. टिप्पनकारे टिप्पनमां ते बधां छंदोनां लक्षणो स्पष्टपणे समझावेला
छे. प्रक्रमना आरंभमां-प्रथम गाथामां रासकारे जगन्नियंता-जगतना सरजनहारनु स्मरण करीने बुधजनोनी कल्याणकामना व्यक्त करी छे. बीनी गाथामां ए ज एक कर्ता परमेश्वरने 'नागरिक जनो नमन करो' एवो भाव प्रगट करी परमेश्वर प्रति नम्रता दाखवी छे. श्रीजी अने चोथी गाथामां पोतानो देश, पिता, पितानो वंशानुगत व्यवसाय, पोतानुं नाम अने रासना नाम साथे तेनी रचना संबंधे सूचन
रयणायर - घर - गिरि - तरुवराई गयणंगणम्मि रिक्खाई।
जेणऽज सयल सिरियं सो बुहयण वो सिवं देउ ॥१॥ २ टिप्पनकारे अने अवचूरिकाकारे 'नागरिक' नी नीचे प्रमाणे व्याख्या आपेली छः
"द्वन्द्वाऽऽलापन-भेषज भोजनसमये समागमे च रमणीनाम् ।
अनिवारितोऽपि तिष्ठति स खलु सखे ! व्यक्तनागरिकः ॥" अर्थात् ज्यां बे जण वात करतां होय, औषधनी वातचीत थती होय, भोजननो वखत होय, रमणीओना समागम समये- एकांतमां आटला स्थळे जेने ऊभो रहेतां कोई न वारे ते 'व्यक्त नागरिक' कहेवाय. (पृ. २) ३ पञ्चाएसि पहूओ पुव्वपसिद्धो य मिच्छदेसो त्थि ।
तह विसए संभूओ आरहो मीरसेणस्स ॥३॥
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