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अंक १] उमाखातिका तत्त्वार्थ सूत्र और उनका सम्प्रदाय [१३५ पद्मनन्दि या कुन्दकुन्द और कुन्दकुन्दके शिष्य उमास्वाति थे। साथ ही कुन्दकुन्दके जो पाँच नाम (एलाचार्य, वक्रग्रीव, गृध्रपिच्छ, पद्मनन्दि और कुन्दकुन्द ) बतलाये हैं उनमें कुन्दकुन्दका भी एक नाम गृध्रपिच्छ है। अर्थात् इसके अनुसार गृध्रपिच्छ उमाखातिका ही नहीं, उनके गुरुका भी नाम था । उधर श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० ४० (शक संवत् १०८५), नं० ४२ (श० १०९९), नं० ४३ (१०४५), नं० ४७ (१०३७), ५० (१०६८), और १०८ (१३५५) के अनुसार उमाखाति ही गृध्रपिच्छ थे, वे कुन्दकुन्दके अन्वयमें (शिष्य नहीं) हुए थे और उनके शिष्य बलाकपिच्छ थे।
पूर्वोक्त गुर्वावलीमें कुन्दकुन्दका एक नाम गृध्रापच्छ बतलाया है और दूसरा वक्रग्रीव । परन्तु शिलालेख नं० ५४ (श० १०५०) में कुन्दकुन्दके बाद समन्तभद्र और सिंहनन्दिकी स्तुति करके फिर वक्रग्रीवकी प्रशंसा की गई है और उन्हें बड़ा भारी वाग्मी और वादी बतलाया है। उक्त लेखमें कुन्दकुन्दके बाद उमाखातिका नाम ही नहीं है और आगे भी उनकी कोई चर्चा नहीं है। .. नन्दिसंघकी पट्टोवलीमें कुन्दकुन्दका समय वि० सं० ४९ और उमाखातिका १०१ लिखा हुआ है पर इसके विरुद्ध आचार्य श्रुतसागरने अपनी तत्त्वार्थटीकामें कुन्दकुन्द और उमास्वाति दोनोंका समय संवत् (वीर नि०१) ७७० बतलाया है।
गुर्वावली, पट्टावली और शिलालेखों आदिके पूर्वोक्त उल्लेखोंसे मालूम होता है कि उनके रचयिताओंको उमास्वातिकी गुरुपरम्पराका, नामका और समयका कोई स्पष्ट ज्ञान नहीं था और इसीलिए उनमें परस्पर मतभेद और गड़बड़ है । पूर्वोक्त शिलालेखोंमें कोई भी श० सं० १०३७ (वि० सं० ११७२) से १-ततोऽभवत्पञ्चसुनामधामा श्रीपद्मनन्दी मुनिचक्रवर्ती ।
आचार्य कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामतिः।
एलाचार्यों गृध्रपिच्छः पद्मनन्दीति... ॥ ३ २-जैनहितेषी भाग ६, अंक ७-८, पृ० २९-३३ । ३- वर्षे सप्तशते चैव सप्तत्या च समन्विते । उमास्वामिमुनिर्जातः कुन्दकुन्दस्तथैव च ।
-ए. पन्नालाल सरखती-भवनकी प्रति नं० १७ 'विद्वज्जनबोधक' नामक भाषाग्रन्थमें भी यह श्लोक उद्धृत किया गया है।
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