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________________ १३४] भारतीय विद्या - [वर्ष ३ उमास्वाति किस सम्प्रदायके थे ? वाचक उमाखातिको दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही अपने अपने सम्प्रदायका मानते हैं, इसलिए अब हमें इस बातकी जाँच करनी चाहिए कि वास्तवमें वे किस सम्प्रदायके थे। भाष्यकी प्रशस्तिमें उमास्वातिने अपने गुरुओं और प्रगुरुओंके नाम दिये हैं, परन्तु वे नाम न तो हमें किसी दिगम्बर-परम्परामें मिलते हैं और न श्वेताम्बरपरम्परामें । दिगम्बर-परम्पराकी जाँच १ दिगम्बर सम्प्रदायकी जो सबसे प्राचीन आचार्यपरम्परा मिलती है वह वीर निर्वाण संवत् ६८३ (वि० सं० ३१३) तककी है । तिलोयपण्णत्ति, महापुराण, हरिवंशपुराण, जंबुदीवपण्णत्ति, श्रुतावतार आदि ग्रन्थोंमें यह लगभग एक-सी मिलती है। परन्तु इस परम्परामें उमाखाति या उनके किसी गुरुका नाम नहीं दिखलाई देता। २ आदिपुराण और हरिवंश विक्रमकी नौवीं शताब्दिके ग्रन्थ हैं। इनमें प्रायः सभी प्रसिद्ध प्रसिद्ध ग्रन्थकर्ताओंका स्तुतिपरक स्मरण किया गया है, परन्तु उनमें उमाखाति स्मरण नहीं किये गये और यह असंभव मालूम होता है कि उमाखाति जैसे युगप्रवर्तक ग्रन्थकर्ताको वे भूल जाते । और आदिपुराणके . कर्ता तो उनके साहित्यसे भी परिचित थे। क्योंकि उन्होंने अपनी धवलाटीकामें एक जगह गृध्रपिच्छाचार्य या उमास्वातिके तत्त्वार्थ सूत्रके एक सूत्रको भी उद्धृत किया है और उनके गुरु वीरसेनाचार्यने तो जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, उमाखातिके भाष्यान्तके ३२ पद्य और प्रशमरति प्रकरणका भी एक पद्य अपनी जयधवलामें उद्धृत किया है। वास्तवमें वे उन्हें भिन्न सम्प्रदायका आचार्य जानते होंगे। ___ ३ दिगम्बर सम्प्रदायमें गृध्रपिच्छाचार्य नामसे उमाखातिकी अधिक प्रसिद्धि है । कहा गया है. कि वे गीधके पंखोंकी पिच्छि रखते थे, इस कारण इस नामसे ख्यात हुए। नन्दिसंघकी गुर्वावलीके अनुसार जिनचन्द्र के शिष्य १- तह गिद्धपिछाइरियपयासिद तच्चत्थसुत्ते वि 'वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य' इदि दव्वकालो परूविदो।-जिल्द ४, पृ. ३१६ २- जैनहितैषी भाग ६, अंक ७-८, पृ० २२-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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