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________________ २] भारतीय विद्या [वर्ष ३ भी उद्धार भोट भाषाके सहारे किया है, और 'सम्बन्धपरीक्षा' की २५ कारिकाओंमेंसे २२ जैन ग्रंथोंमें प्राप्त थीं, तीनको मैंने भोटसे संस्कृतमें कर दिया। इसकी वृत्तिको भी भोट भाषासे पूरा करनेमें लगा हूं। 'हेतुबिन्दु' और 'संबंधपरीक्षा' पुस्तकाकार नहीं छपे हैं, तो भी धर्मकीर्तिके पांच निबन्ध संस्कृतमें उपलब्ध हैं। 'सन्तानान्तरसिद्धि' में 'वादन्याय' की भाँति एक पद्य और बाकी गद्य है । पद्य जैन ग्रंथों में उपलब्ध है, गद्य भाग ६०-६५ श्लोकोंके बराबर होनेसे भोट भाषासे संस्कृतमें करना अल्पश्रमसाध्य है; किन्तु गद्यपद्यमय 'प्रमाणविनिश्चय' प्रायः 'प्रमाणवार्तिक के बराबर है, और उसे भोट भाषासे संस्कृतमें करना ज्यादा श्रमसाध्य है । साथ ही डर भी है, कि कहीं मूल ग्रंथ किसी जैन भंडार या तिब्बती विहारसे न निकल आवे, और इस प्रकार सारा श्रम व्यर्थ हो जावे। अस्तु, धर्मकीर्तिके सातों निबन्धोंका न्यायके विद्यार्थियोंके सामने होना, अत्यावश्यक है, यह निर्विवाद है। . प्रमाणवार्तिक-भाष्य-जैसा कि मैंने ऊपर कहा, प्रमाणवार्तिक बहुत कठिन ग्रंथ है, शब्दाडंबरके कारण नहीं, बल्कि थोडेमें बहुत कह डालनेकी धर्मकीर्तिकी प्रवृत्तिके कारण। लेकिन, मूलको लगानेके लिये मनोरथनंदीकी वृत्तिसे सुंदर साधन नहीं मिल सकता था। यह वृत्ति हमारे भारतीय आचार्य तिब्बत ले गये थे। शायद भोट भाषामें अनुवाद करना चाहते थे। मगर वह तो नहीं हो सका, लेकिन इस तरह उन्होंने भारतमें अन्यान्य ग्रंथोंकी तरह नष्ट होनेसे उसे बचा लिया । वार्तिकके शब्दोंको समझनेके लिये मनोरथनन्दीकी यह वृत्ति बहुत उपयोगी है, इसमें सन्देह नहीं; मगर वार्तिकके भावोंके समझनेके लिये हमें और बडे ग्रंथकी जरूरत थी। धर्मकीर्त्तिके तृतीय परिच्छेद - खार्थानुमानको समझानेका काम उनकी स्ववृत्तिपर लिखी गई कर्णकगोमीकी विस्तृत टीकाने किया जो हमें तिब्बती विहारोंने प्रदान की। अन्य तीन परिच्छेदोंपर प्रज्ञाकर गुप्तका भाष्य - वार्त्तिकालंकार - एक अनमोल निधि है । इस प्रकार आज वार्तिकके भावोंको समझनेके लिये हमारे पास ३५ हजार ग्रंथ (श्लोक प्रमाण) मौजूद हैं। १ किताबमहल (प्रयाग) द्वारा प्रकाशित ( १९४४ ) । २ मनोरथनंदी ८ हजार, खवृत्ति ३ हजार, कर्णकगोमी ८ हजार, वार्तिकालंकार १६ हजार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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