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________________ वर्ष ३] श्रावण, सं० २००० भारतीय विद्या ० अमृतं तु विद्या जुलाई, सन् १९४४ प्रज्ञाकर गुप्त और उनका भाष्य ले० - श्रीयुत महापंडित राहुल सांकृत्यायन * धर्मकीर्त्ति भारतकी अप्रतिम प्रतिभा है । उनका 'प्रमाणवार्त्तिक' भारत ही नहीं बिश्वके न्यायग्रन्थों में सदा बहुत ऊँचा स्थान रखेगा । आचार्यने अपने इस ग्रंथकी १४५२३ कारिकाओंमें अपने गम्भीर चिन्तनका निष्कर्ष अत्यन्त संक्षेपमें अतएव समझने में कुछ कठिन रूपमें रख दिया है । धर्मकीर्त्तिके नामसे कुछ काव्यमय पद्य भी सुभाषित संग्राहकोंने उद्धृत किये हैं, मगर वे बहुत कम विश्वसनीय हैं । न्याय ( = प्रमाण ) - शास्त्रपर उनके 'सात निबन्ध', और उनमें से दो पर स्वोपज्ञवृत्ति विख्यात हैं -- १. न्यायबिन्दु २. हेतुबिन्दु ३. सम्बन्धपरीक्षा (सवृत्ति) Jain Education International ४. वादन्याय ५. सन्तानान्तरसिद्धि ६. प्रमाणविनिश्चय ७. प्रमाणवार्त्तिक ( तृतीय परिच्छेद पर सवृत्ति ) इन ग्रंथोंमें ‘न्यायबिन्दु' पहिले ही से प्राप्त था । ' वादन्याय' और 'प्रमाणवार्त्तिक' को मैं तिब्बतकी यात्राओं में प्राप्त कर सम्पादित कर चुका हूँ- 'प्रमाणवार्त्तिक' स्ववृत्तिके खंडित को भोट भाषा से संस्कृत में करके । ' हेतुबिन्दु' का [ अंक १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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