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वा च क गुण वि न य र चित राज काज सगला करी, बछराज मंत्रीसि । जोधउजी निज वसि कीयउ, पूछइ तमु निसदीसि ॥ एहवा०॥ ७१ वयर लेवानइ कारणइ, लेइ योध अनेक । जोधइ राणउ निरदल्यउ, भोगी जिम भेक ॥ एहवा०॥ मेदपाट दहवट करी, जोधउ जोधपुरि आइ । अंतेउर जंगल थकी, आणी हरषित थाइ ॥ एहवा०॥ जोधानइ सीता समी, नवरंगदे नारि । वीकम वीदा नामि ए, दुइ सुत सुखकार ।। रहवा०॥ हाडी जसमादेवि नइ, जाया त्रिण्ह पूत्र । नीबा सूजा तिम वली, सातल सुभ सूत्र ॥ एहवा०॥ वीकउ तेज अधिक गिणि, जसमादे देवि । सउकि तणइ षेधइ लगी, इम चिंतवइ हेव ॥ एहवा०॥
उक्तं च-वरं रङ्ककलत्राणि, वरं वैधव्यवेदनाः।
वरमरण्यवासो वा, मा सपत्नीपराभवः ॥१ विक्रम कुमर छतां किहां, मुझ पुत्रनइ राज । आवेस्यइ तिणि राजनइ, जणावइ काज ॥ एहवा०॥ जायामाया मोहीयउ, नृप योध बुलाइ । विक्रमनइ इणिपरि कहइ, तसु जेम सुहाइ ॥ एहवा०॥ जे निज भुजि खाटइ धरा, सुत तेह प्रमाण । भोगवतां पितृ राजनइ, किम लहइ वखांण ॥ एहवा०॥ वापनी भोगवी माय ज्यु, भगिनी पितृजात । राज्यसिरि सुतनइ कही, तिणि संभलि वात ॥ एहवा०॥ जंगलदेस लेइ करी, साथइ [छइ] बछराज । बुद्धिमंत मोटउ अछइ, करउ तिहां वछ ! राज ॥ एहवा०॥ एहनी सीखइ चालिज्यो, जाइ जंगलदेसि । मंत्रीनइ पुणि सीखवइ, तूं पूठि म देसि ॥ एहवा०॥ छलि बलि सवि अरि वसि करी, सजडउ करी राज । मंत्र तिसउ करिज्यो तुझे, नावइ जिम लाज ॥ एहवा०॥ तुह्म खोलइ सुत मइ दीयउ, तुह्म छइ मति प्राण । मत काइ एइनी कदे, लोपइ कोइ आण ॥ एहवा०॥ सीख इख जिम त्रेवडी, बछराजसुं तेह । शुभ शकुने वलि प्रेरीयउ, नवि मावइ देहि ॥ एहवा०॥ काहुंनी गामइ रही, भूमीया नरेस । काढीनइ सुख भोगवइ, वासी निज देस ॥एहवा०॥
॥ ढाल ५, राग-केदारो, गोडी-चंदलीयानी ॥
भाविक जन बंदउ सुह गुरु पाय, श्रीखरतर गछराय-ए देशी। वछराजनुं मंत्रित्व । पटराणी रंगदेवीनइ सुत थया हरष्यउ राय, लूणकरण तरणि जिसउ प्रतापइं धरइ दाय उपाय । वलि नरउ राजउ तेम घडसी वली वीसल नामि, मेघराज केल्हण सुत सवे, राखइ जग मइ निज नाम ॥ ८७
___ विक्रम नृप दीपइ अधिक पडूर, जगि वाज्यउ जस तणउ तूर ।-आंकणी। नृपवास काजइ गढ कर्यउ पाखती नगर निवेस, ववहारिया वसिवा तिहां आवीया सुणि सुनरेस । तिणि नगरनउ सुमुहूरतइ शुभलगनि सुंदर ठामि, जिहां भला मंदिर मालिया, कोडिमदेसर दीयउ नाम ॥ विक्रम०॥ ८८ सवि मंत्र तंत्रइ पूछिवा बछराज एक धुरीण, 'परभूमि पंचानन' बिरुद जिणि धर्यउ अति सुप्रवीणि । शत्रुजयादिक यात्र करि जिणि कर्यउ अंग पवित्र, देराउरइ जिनकुशलनी यात्रा करइ विमल चरित्र । विक्रम०॥ ८९
मुलताणरइ नरपति तिहां बोलाइ सुणि जसवाद, वर तुरग करी बहु मानीयउ पंचांग देइ प्रसाद । तिणि छत्र एक ज आपीयउ बहु वर्ण करीय विचित्र, विक्रम नृपति नइ सिरि धर्यउ जाणे चंद्र साथि निखित्र॥ विक्रम०॥
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