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________________ श्रीक र म चंद मंत्रि-वंश प्रबन्ध । देवराजनइ मुत त्रिण्ह हुआ दसू तेजा नामि, भोज ज्युं त्रीजउ भुंण मंत्री सारइ सजनां काम । हंसराज हंसतणी परइ जलमांहि मजन किद्ध, दस्सू तनय नीवउ वली जोगा रूपकरण प्रसिद्ध ॥ विक्रम०॥ ९१ नीवा तनय खेतसी खरउ जोगा तनूरुह पंच, सिवराज पंचायण वली सिंहराज प्रमुख अवंच । चउवीसवट्टइ देहरइ अद्यापि जसु संतान, ध्वजारोप करणी नितु करइ किम छोडइ कुलपुत्र मान ॥ विक्रम०॥ ९२ श्रीवंत नइ जयवंत रूपा पुत्र कुलगृह दीप, मंत्रि कर्णसुत श्रीपाल दीपइ जाणि मुगतासीप । सदारंग रायमल्लादि तसु सुत दोइ तेजा पुत्र, श्रीवंतना सुत पदमसी उदारिक मंत्र मुनेत्र ॥ विक्रम०॥ वछराजनइ घरि घरणि वाल्हा देविना सुतसिंह, कर्मसिंह श्रीवरसिंह सोहइ सुजसि नरसिंह । वलि रतनसी हिव करमसी नारि कोतगदेवि, तसु पुत्र राजा सूरिजमल संसार सुगुण गजरेवा ॥ विक्रम०॥ ९४ मंत्रि राजधर सुत माल पीथा वली जयता जाण, संसारचंद्र सुत मान मानइ करी मेरुसमाण । रत्नसीह सुत वस्ता वली रायपाल मांडण नूर, वस्तपाल मुत मुरताण सांकर ठाकुरसीह सनूर ॥ विक्रम०॥ ९५ वयरसल्ल भाखरसीह आदिक मंत्री नूरा जात, रायचंद नेतसी प्रमुख मांडण तनय मंत्रि विख्यात । धनराज महं रायपाल सुत रामदास सामीदास, नरसिंहना सुत नव थया नवनिधि जिम पूरइ आस ॥.विक्रम०॥ ९६ भीमराज अख्खा वयर वाघ वर पंचायण नामि, ददराज सांगउ जिण गउडा समति करि अभिराम । विक्रम नरेसर वंसि हिच जागीयउ लूणकरण, अवतार लीधउ दांन देवा जाणे राय करण ॥ विक्रम०॥ ९७ लूणकर्णनइ सुत जयतसी परतापसी सुप्रताप, रतनसीह तेजा वयरसी रूपसीह कृष्ण निपाप। श्रीरामजी तिम नेतसी करमसी सुरिजमल्ल, कर्मसिंह मंत्रीसर हूंअउ हिव सुरमणि जेम अमुल्ल ॥ विक्रम०॥ ९८ लूणकर्ण नइ लहु वयइ टीलक राजनउ जिण दिद्ध, विधु जलधि इंद्रिय चंद्र(१५४१) वच्छरि बीकानयरि प्रसिद्ध । गढ कीयउ तिहां श्रीकर्मसिहइ नमिविहार उदार, बहु वित्त खरचि करावीयउ धन जे करइ एह जुहार ।। विक्रम०॥ ९९ श्रीशांतिसागरमरि पाहइ नंदिमह मंडाणि, जिनहंससूरि थपावीयउ नवि करी धनरी कांणि । मुनिवेस दानि संतोषीआ जे मिल्या उच्छवि तत्थ, साहमीवच्छल वलि कीयउ धन तेहिज गिणउ सुक्यत्थ। विक्रम०॥ १०० मांगणां'मन' कारां थकी जिणि मुंज-भोज नरिंद, धन दान करि मूकाविया जसु नमइ सकल नरिंद। पुंडरगिरइ रैवतगिरइ आबूअइ श्रीजिनजात्र, मुगतउ करी संघनइ करावइ श्रीसिद्धक्षेत्री सनात्र ॥ विक्रम०॥ १०१ मारगइ लाहण साहमीघरि आपतउ मंत्रीस, पदठवणि चैत्यइ जात्र करि खरचीयउ धरी सुजगीस । पीरोजीयां त्रिण्ह लाख दाखइ जेहि निसुणी वात, सत्कार युग जलनिधि करम भूमी(१५४२) वच्छरिद्यइ सुहात । विक्रम०॥ जिणि कल्पपुस्तक चवद वरसां सीम हरिष वचाइ, बहु द्रव्य खरच्यउ अन्यदा चित्रकूटि प्रभुस्युं थाइ। राजकुमार बीजे आवीय ए निज सामि नइ दे थोभ, वीवाहउच्छच हिव करावी वद्धारी जिणि सोभ ॥ विक्रम०॥ १०३ रस भूत इषु विधु(१५५६) प्रमित वच्छरि थापना जसु कीध, नमिचैत्य गगन मुनी समिति शशि(१५७०)वरसि पूरण सीध। अन्यदा पहुता लूणकर्ण स्युं नंदगोकुलि मंत्रि, अरिघात करिवा वैरिसुंरण लागउ किणही मंत्रि॥ विक्रम०॥ १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003400
Book TitleMantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1980
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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