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श्रीकर म चंद मंत्रि-वंशप्रबन्ध ।
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।। ढाल ३; वाहण सिला मउ ताण-हुसेनी धन्यासी ।। कडूआनी कारकीर्दि। श्रीपातिसाहिनी वाहिनी ए, मालवदेसथी ताम । मुणी तिहां आवती ए, आकुल थया पुर गाम ॥ राणउजी इम कहइ ए, संघपति करउ उपाय । जिणइ सेना फिरइ ए, परधानइ तो थाय-आंकणी ।। तिणि सेती संधि साचवी ए, पाछी साहिनी सेना । उतारी आवीयउ ए, सकति करी *महसेन ॥ राण॥ ४७ हिव नगरी हरषित हुइ ए, राजा घइ बहुमान । मंत्रीसर थापीयउ ए, देइ हय गय दान ॥ राण॥ ४८ हिव कडूअउ मंत्री हुअउ ए, गोत्र्यानउ कर छोडि । सुजस जगि जिणि लियउ ए, पूरि मनोरथ कोडि ॥ राण०॥ ४९ वलि अणहिलपत्तनि गयउ ए, मंत्री धरिय उल्हास । नृपइ बहु मानीयउ ए, आप्यउ पाटण तासु ॥ राण० ॥ ५० श्रीजिनबिंब भराविया ए, खरची बहुविध वित्त । सवे कर छोडिआ ए, रंज्या सजनां चित्त ॥ राण० ॥ ५१ लोकहिताचारिज करइ ए, श्रीजिनराजनइ पाट । दिरायउ जिणि विधइ ए, नंदिमहोच्छव थाटि ॥ राण॥ ५२ तिणि उच्छवि जे आवीया ए, वस्त्रादिकनइ दानि । संतोष्या साहमी ए, मानी काढइ कान ॥ राण॥ ५३ गूजरदेसइ जीवनी ए, हिंसा सगलइ वारि । कुमरनृपनी परई ए, हिव वरतावि अमारि ॥ राण॥ शत्रुजय यात्रा करी ए, भरीया पुण्यभंडार । सरग सुख पामीया ए, कीधा काम उदार ॥ राण०॥ मेरागर तसु सुत हूअउ ए, हरिषमदे तसु नारि । विमल आबूगिरइ ए, जात्रा करइ गिरिनारि ॥ राण०॥ विमलगिरइ यात्रा करी ए, तीरथ मुगतउ किद्ध । गुपति दानइ करी ए, जगमइ जिणि जस लद्ध ॥ राण० ॥ ५७ कुलमंडण मांडण हूअउ ए, तासु सुपुत्र प्रसिद्ध । सुमहिमा तेहनइ ए, नारी सील समिद्ध ।। राण०॥ ५८ तीरथयात्रा तिणि करी ए, समरीनइ निज ठामि । सपरिवार उथइ ए, आव्यउ महेवा नामि ॥ राण॥ ५९ जिनपूजन पौषध करइ ए, पर्व दिवस ध्रमकाज । क्रमइ अनशन विधइ ए, पाम्यउ सरग समाज ॥ राण०॥ ६० उदयकरण उदउ हिवइ ए, तमु नंदन मतिधार । दयारस पूरीयउ ए, उछरंगदे भरतार ॥ राण० ॥ तेहना सुत बेवइ भला ए, नरपाल नइ नागदेव । तेजइ करी दिनकरु ए, करइ श्रीसदगुरू सेव ॥ राण०॥ नागदेव घरि कुलवधू ए, नारंगदे वरवंस । गुणइ करी सोभती ए, सीलवती अवतंस ॥ राण०॥ तासु तनय त्रय जयधरु ए, जेसल विरम नामि । कलागुणि आगला ए, सारइ सजनां काम ॥राण०॥
॥ ढाल ४; पुण्यइ प्रीतम वलि मिलइ-राग, गुंड मल्हार । मंत्री बछराज । तेहनइ पुत्र त्रिण्ह हुआ, जाणे त्रिवरग सार । त्रिभुवननी रक्षा भणी, विहि कीयउ अवतार ॥
एहवा पुत्र पुण्यई हूवइ-आंकणी। श्रीवछराज वडउ तिहां, देवराज सुजाण । हंसराज त्रीजउ तिहां, सुणइ सुगुरू वखाण ॥ एहवा०॥ तिहां बछराज सुभटपुरइ, निज बंधव जोडि । रिणमल नृप पासइ वसइ, नाणइ कांइ खोडि ॥ एहवा०॥ अन्य दिनइ सेवा भणी, कुंभानइ पासि । रिणमल नृपति पधारिया, चित्रकूटि विमासि ॥ एहवा०॥ रिणमल राणइ तिहां हण्यउ, करी कोइ प्रपंच । नृप सरीक जन मारिव[उ], न करइ खलखंच ॥ एहवा०॥ हिव जोधउ सुत तेहनउ, तिणि देस विणास । जाणी अंतेउर गही, कर्यउ जंगल वास ॥ एहवा०॥ ..* कार्तिकेय।
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