________________
वाचक गुण विनय रचित
॥ दूहा ।। तिण अवसरि खरतर सुगुरू, सूरि जिणेसर सार । साधु विहरइ विहरता, आया तिहां सुखकार ॥ शुभ शकुने करि जाणीयउ, होस्यइ लाभ महंत । वरिषा वासइ तिहां रहया, संयम धरि एकंति ॥
॥ ढाल २, राजपुरुष पोंकारीयउ-ए देशी ॥ समधर अने तेना पुत्र-पौत्र । अन्य दिनइ शासनसुरी, निस भरि आवी तामो रे । श्रीगुरुनइ इम वीनवइ, होस्यइ फल अभिरामो रे ॥ २३
गछपति हरषित हूआ-आंकणी। च्यारि नृपतिसुत बूझस्यइ, जिनशासन उदय विसालो रे । करिम्यइ तिणि तुह्मनइ इहां, लाभ अछइ चउसालो रे ॥ गछ०॥
२४ श्रीगुरुनी देसण सुणी, जाणी अमृत रेलि रे । प्रतिबूधा तिणि खिणि सवे, राजकुमर पुण्य वेलि रे ॥गछ० ॥ २५ दिन प्रति जिन-पूजा करइ, निसुणइ श्रीगुरुवाणि रे । श्रीपुंडरगिरी रैवतइ, जात्रा करइ सुजाण रे ॥ गछ० ।। २६ मारगि जातां घरि घरइ, पूगीफलनउ थाल रे । आप्यउ तिणि लोके काउ, फोफलीया सुरसाल रे ॥ गछ० ॥ २७ संघपति पदवी लही, समधरि धरि संघभार रे । जयती उयरसरोवरइ, तेजपाल सुत सार रे ॥ गछ०॥ २८ तारादेवी तेहनइ, लावनलीलनिधान रे । गूजरदेश धणी भणी, अन्य दिनइ बहु मानि रे ॥ गछ० ॥ २९ भेटी घणी देइ करी, लीयउ मुकातइ देसो रे । अणहिलपाटणरउ धणी, थयउ तेजपाल नरेसो रे ॥ गछ०॥ ३० वील्हा नामइ तेहनइ, सुत रतिपति सम गात्र रे । शत्रुजय रैवतगिरिइ, संघ करी करइ जात्र रे ॥ गछ०॥ . ३१ मुगतिनिलय मुगत कीयउ, देइ दान अपार रे । सर्व संघ पिहरावीयउ, सोहगसिरि उरिहार रे ॥ गछ०॥ ३२ सोवनमुद्रा थालस्युं, पंच सेर चित्त चाह रे। मोदकलाही घरि घरि करइ, लाछितणउ ल्यइ लाह रे ॥ गछ०॥ ३३ श्रीजिनकुशल सूरीसनउ, पदठवणउ उच्छांहि रे। पाटणनगरि करावीयउ, श्रीआचारिज पांहि रे ॥ गछ०॥ ३४ श्रीसंमेतशिखरिं जइ, करइ सफल निज माल रे। संघ सहित मनरंगस्युं, जाणी पूरव चाल रे ॥ गछ०॥ ३५ पर सेनायइ रूंधीया, मारगि संघाधीस रे । संघ सबल ते जाणिनइ, नाठी नामी सीस रे ॥ गछ० ॥ ३६ लाहाणि पुंडरगिरि परइ, कीधी मारगि ताम रे । सत्कार दीयउ वली, राख्यउ जिणि निज नाम रे॥ गछ० ॥ ३७
___इम करि जिनशासनि उदउ, अनशन विधिसुं लीधउ रे। संघपति सरगि पधारीया, बपु वपु कारिज कीधउ रे ॥ गछ० ॥
३८ तासु पाटि वील्हउ हूअउ, तमु घरि वीना नारि रे। कडूआ धरणा तमु थया, सुत नंदउ सुविचार रे ॥ गछ० ॥ ३९ श्रीसिद्धसेहरगिरि तणी, श्रीगिरिनारिनी जात्र रे । संघ पूज वली तिणि करी, पोपि अपूरव पात्र रे ॥ गछ० ॥ ४० पर्व दिवसनइ पारणइ, विविध अन्न पकवानि रे । साहम्मीवच्छल करइ, जावज्जीव प्रधान रे ॥ गछ०॥ ४१ इम निज धन वावी करी, साते खेत्रि पवित्रो रे। सुर लोकइ लीला लही, निर्मल जासु चरित्रो रे ॥ गछ० ॥ ४२ तासु पाटि कडूअउ हूअउ, नामिइ पिणि परणामि रे । मीठउ अमृतफल जिसउ, समरी पूरवज ठामि रे॥ गछ०॥ ४३ मेदपाट दिसि आवीयउ, चित्रकूटनइ वास रे । राजा अइ सनमानीयउ, फलीयउ पुण्यविलास रे ॥ गछ० ॥ ४४
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org