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ठकुरफेरूविरचिता कजलिय मूसि थूरिय तोपाल नियारयस्स सुहम कणं । सोहग्ग फक्क सजिय दसंस जुय कढिय हवइ दलं ॥३०॥
॥इति कणचूर्ण शोधना॥ चउ भाय अमल तंबय वर पित्तल सोल भाय सह कढियं । इय रीसं कायव्वं रुप्पस्स विसोव करणत्थे ॥३१॥ वीस विसोवा रुप्पं मासा वीसाउ जं जि कडिज्जा । तित्तिय मासा रीसं दिज्ज हवइ ते विसोव कसं ॥३२॥
॥इति रुप्पवनमालिका ॥ अइ चुक्ख रुप्प तंबय कमि पनरह सट्ट सडू चउ रीसे । इय भाय वंनियत्थे सोलस चउ कणय घडणत्थे ॥३३॥ जारिस वन्नी कीरइ तित्तिय दु जवहिय भित्ति कणओ य । सेस दु जवूण रीसं एवं तोलिक्कु हवइ परं ॥ ३४ ॥ रीस सम रुणय पढमं गालिवि पुण थोव कणय सह कढियं । पुण सेस सहा वट्टिय ता हवइ जहिच्छ वन्नाभं ॥ ३५॥
अथवाराम कर भाय सुलभं तारं मुणि सत्त भाय सह कढियं । एयं सयंस रीसं सुवन्न वन्नस्स हरण वरं ॥ ३६ ॥ सेयालीस विभायं धुर कणय करवि एग एगूणं । तत्तुल्लि दिज रीसं कमेण पाऊण हुइ वन्नं ॥ ३७ ॥
॥ इति कनकवनमालिका ॥ जवि सोलसेहि मासउ चहु मासिहि टंकु तोलओ तिउणो। सोलहि जवेहि वन्नी वारहि वन्नी महाकणओ ॥ ३८ ॥ वन्नी तुल्लेण हयं भित्ति सुवन्नस्स अग्घ सह गुणियं । वारस भागे पत्तं जहिच्छमाणस्स तं मुल्लं ॥ ३९ ॥
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