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________________ २१ द्रव्यपरीक्षा नाणा वन्नी कणओ नाणा तुल्लेण जाम गालिज्जा। केरिस वन्नी जायइ अह एरिस वन्नि किं तुल्लो ॥ ४० ॥ जसु वन्नी जं तुल्लो सो तस्सरिसो गुणेवि करि पिंडं । तुल्लि विहत्ते वन्नं इच्छा वन्नी हरे तुल्लं ॥ ४१॥ ॥ इति स्वर्ण विवहारं ॥ उग्घाड मूसि दुग सउ पडिय सओ ढक्क मूसि उद्देसो । आवट्ट खए गच्छइ हरजइ तह रीण वट्टे य ॥ ४२ ॥ छेयणि घडणु ज्जालणि सहस्सि तोलेहि रुप्पु चउमासा। कणओ सवाउ मासउ टंक? सहस्सि दम्मेहिं ॥४३॥ ॥इति हास्यं ॥ चहु सय ठुत्तरि कणओ चहु सय वत्तीस कणय टंको य। तेवन्नि सङ्क रुप्पउ सट्ठि टकउ नाणउ ति वन्ने ॥ ४४ ॥ तोलिक्कस्स सलूणी दम्मिहि वत्तीसि चउ हु कायरियं । रुप्पस्स खरडि सीसय पमाणि छह टंक दम्मिके ॥४५॥ सीसस्स मली सीसस्स अद्धए तह य डउल खरडि पुणो । लोहद्धि लोह कक्कर इय अग्धं तेर वासट्टे ॥ ४६ ॥ रुप्पय कणय ति धाउय इय तिय मुद्दाण मुल्ल दम्मेहिं । वन्निय तुल्ल पमाणे सेस दु धाऊय टंकेण ॥ ७ ॥ नाणा मुद्दाण कए जारिसु टंको पमाणिओ होइ । टंकेण तेण मुल्लं गणियव्वं सयल मुद्दाणं ॥ ४८ ॥ भणिसु हव नाणवढं दम्मित्तिहि जाम इत्तियं मुदं । इय अग्घ पमाणेणं इत्तिय मुंदाण कइं मुलं ॥ ४९ ॥ . रासिं तिगाइ गुणियं मज्झिम हरिऊण भाउ जं लडं । तं ताण मुंद मुलं न संसयं भणइ फेरु त्ति ॥ ५० ॥ ॥ इति मौल्यम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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