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ठकुर फेरूविरचिता
सय तोलामज्झेणं वारह जब सीसए हवइ रूपं । पच्छा पुण पुण सोहिय तहावि निकणं न कइयावि ॥ ९ ॥ ॥ इति नागचासनिका ॥
रुपस्स वीस मासा छटंक नागं च देइ सोहिज्जा | जं जाय ते विसुवा एवं हुइ रुप्प चासणियं ॥ १० ॥ ॥ इति रुप्पचासनिका ॥
नाय हक्क हरजय रीणी चक्कलिय टंक दस गहिउं । पनरह गुण सीसेणं सोहिय नीसरइ जं रूप्पं ॥ ११ ॥ तरसाओ पाडिज्जइ रुपं सीसस्स जं रहइ सेसं । तं चासणिय सरूवं अन्नं जं खरडि मज्झि हवे ॥ १२ ॥ नीचुच्च नाणयाओ कमेण चउ दु जव किंचि हीणहिया । संगहइ खरडि रूप्पं अवस्स चासणिय समयंमि ॥ १३ ॥ हरजय चासणिय दुगं दह दह टंकस्स मेलि गहि अद्धं । पण दु जवंतरेसु हदु जवंतरि वाहुडइ नूणं ॥ १४॥ ॥ इति द्रव्यचासनिका ॥
चासणिय जव दहग्गुण जि टंक मासा हवंति तस्सुवरे । अग्गरस भुति दीयइ टंकप्पइ जे जवा होंति ॥ १५ ॥ तं सय मज्झे रुपं तहच्छमाणस्स पूरणे जंतं । तंवअहियस्स पुण जय सल्लाही सा भणिज्जेइ ॥ १६ ॥
॥ इति सल्लाहिकाविधिः ॥
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सामन्त्रेण सुवन्नो वारहि वन्नीय भित्ति कणओ य । पंच जव हीण चिप्पं पिंजरि बन्नी य पंच तुले ॥ १७ ॥ सिय खडिय लूण कल्लर सम मिस्सिय चुन्न सा सलोणीयं । hear are चिप्प करेवि तेण सह पइयव्वं ॥ १८ ॥
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