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________________ ठकुर फेरू विरचिता प्राकृत भाषाबद्धा द्रव्यपरीक्षा ॐ नमो कमलवासिणी देवी । कमलासण कमलकरा छणससिवयणा सुकमलदलनयणा । संजुत्तनवनिहाणा नमिवि महालच्छि रिद्धिकरा ॥ १ ॥ जे नाणा मुद्दाई सिरि ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए । अणुभूय करिव पत्तिउ वन्हि मुहे जह पयाउ घियं ॥ २ ॥ तं भइ कलसनंदण चंदसुओ फिरऽणुभाय तणयत्थे । तिह मुल्छु तुल्लु दव्वो नामं ठामं मुणंति जहा ॥ ३ ॥ पढमं चिय चासणियं, वीयइ कणगाइ रुप्प सोहणियं । तइए भणामि मुहं चउत्थए सव्व मुंदाई ॥ ४ ॥ दारं ॥ चासणियं जहा - सुक्कं पलासकट्ठे गोमय आरन्नगा अजा अस्थि । कमि तिय इगे गि भायं एगट्ठे दहिय तं रक्खं ॥ ५॥ छाणि सेर सवायं वंधि गहं वंकनालि धमि मंदं । धव अंगार सवा मणि सौहिय उत्तरइ चासणियं ॥ ६॥ तं पुणरवि सोहिज्जइ पण तोला रक्ख वंधिऊण गहं । ता हवइ सहं कूरं अइ निम्मल चासणिय रुप्पं ॥ ७ ॥ ॥ इति सर्व चासनिका मूलसोधनविधिः ॥ सीसस्स अमल पत्तं करेवि लहु खंड तुलिवि सोहिज्जा । नीसरइ रुप्प सयलं सीसं गच्छेइ खरडि महे ॥ ८ ॥ ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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