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________________ ठकुर-फेरू-विरचित सहज और श्यामलिक रंग के होते थे। सहज का रंग सेवार जैसा और दूसरेका शुकपंख, शिरीष पुष्प और तूतीया जैसा होता था। रत्नशास्त्रों में पन्ने के पांच गुण यथा-खच्छ, गुरु, सुवर्ण स्निग्ध और अरजस्क (धूलिरहित ) हैं । ठक्कुर फेरू के अनुसार (७६) अच्छी छाया, सुलक्षणता, अनेकरूपता, लघुता और वाड्यता पन्ने के पांच गुण हैं। रत्नशास्त्रों के अनुसार शबलता, जठरता (कांतिहीनता) मलिनता, रूक्षता, सपाषाणता, कर्करता और विस्फोट पन्ने के दोष हैं । ये ही दोष ठक्कुर फेरू ने गिनाए हैं । केवल शबलता की जगह सरजस्कता आ गई है। बुद्धभट्ट के अनुसार नकली पन्ना शीशा, पुत्रिका और भल्लातक से बनता था। इसके बनाने में मंजीठ, नील और ईगुर भी उपयोग में लाए जाते थे । उपरत्न रत्नशास्त्रों में उपरत्नों का बडी सरसरी तौर पर उल्लेख हुआ है । पांच महारत्नों के विपरीत ठक्कुर फेरू ने विद्रुम, मूंगा, लहसनिया, वैडूर्य, स्फटिक, पुखराज, कर्केतन और भीष्म का उल्लेख किया है। विद्रुम-अर्थशास्त्र (अंग्रेजी अनुवाद, पृ० ७६) के अनुसार मूंगा आलकंद और विवर्ण से आता था । यहां आलकंद से मिस्र के सिकंदरिया के बंदरगाह से मतलब है । टीका के अनुसार विवर्ण यवन द्वीप के पास का समुद्र है । अगर यह ठीक है तो यहां विवर्णसे भूमध्य सागर से तात्पर्य होना चाहिए । बुद्धभट्ट (२४९-२५२) के अनुसार मूंगा.शकवल, सम्लासक, देवक और रामक से आते थे। यहां रामक से शायद रोम का मतलब हो सकता है । अगस्तिमत के एक क्षेपक (१०) में कहा गया है कि हेमकंद पर्वत की एक खांरी झील में मूंगा पाया जाता था । ठक्कुर फेरू के अनुसार (९०) मूंगा कावेर, विन्ध्याचल, चीन, महाचीन, समुद्र और नेपाल में पैदा होता था। पेरिप्लस (२८, ३९, ४९, ५६) के अनुसार भूमध्य सागर का लाल मूंगा बारबारिकम, बेरिगाज़ा (भरुकच्छ ) और मुज़िरिस के बंदरगाहों में आता था। प्लिनी (२२।११) के अनुसार मूंगे का भारत में अच्छा दाम था। आज की तरह उस समय भी मूंगा सिसली, कोर्सिका और सार्डीनिया, नेपल्स के पास लेगहान और जेनेवा, कारालोनिया, बलेरिक द्वीप तथा ट्यूनिस अलजीरिया और मोरक्को के समुद्र तट पर मिलता था । लाल सागर और अरब के समुद्रतट के मूंगे काले होते थे। अगस्तिमत के हेलकंद पर्वत के पास एक खारी झील में मूंगा मिलने के उल्लेख से भी शायद लाल सागर अथवा फारस की खाड़ी के मूंगों से पतलब हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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