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उकुर-फेरू-विरचित हम ऊपर देख आए हैं कि इब्नबतूता सिंहल के नीलम और उसके प्राप्तिस्थान का किस तरह आंखों देखा हाल वर्णन करता है । लिंक्शोटेन (भा० २, पृ० १४०) के अनुसार पेगू का नीलम भी अच्छा होता था, जो शायद मोगाके की मानिक की खानों से निकलता था । ( तावनियेर, २, पृ० १०१, १०२)। कलपुर और कलिंग के नीलम से शायद बर्मा और स्याम के नीलम से मतलब हो जो कलिंग और केदा के बाजारों में जाकर बिकते थे।
रत्नशास्त्रों में नीलम के दस या ग्यारह रंग कहे गए हैं। श्वेतनीलाभ नीलम ब्राह्मण, रकनीलाभ क्षत्रिय, पीतनीलाभ वैश्य, तथा घननील शूद्र माना गया है । ठक्कुर फेरू के अनुसार नीलम के नौ रंग होते थे यथा- नील, मेघवर्ण, मोरकंठी, अलसीका इल, गिरकर्णका फल, भ्रमरपंखी, कृष्ण, श्यामल और कोकिलप्रीवाम ।
रत्नशास्त्रों के अनुसार नीलम के पांचगुण है, यथा - गुरुता, स्निग्धता, रंगाब्यता, पार्श्वरंजनता और तृणग्राहित्व । ठक्कुर फेरू के अनुसार ये गुण हैं-गुरुता, सुरंगता, सुश्लक्ष्णता, कोमलता और सुरंजनता ।
रत्नशास्त्रों के अनुसार नीलम के छः दोष हैं यथा-अभ्रक (धूमिल ) कर्कर या सशर्कर ( रेतीला), त्रास (टूटा ), भिन्न (चिटका), मृदा या मृत्तिका गर्म ( भीतर मिट्टी होना) और पाषण (हीर में पत्थर होना )। ठक्कुर फेरू (८३) के अनुसार नीलम के नौ दोष हैं, यथा - अभ्रक, मंदिस ( भद्दा ), सर्करगर्भ, सत्रास, जठर, पथरीला, समल, सागार (मिट्टीभरा) और विवर्ण ।
नीलम का दाम मानिक की तरह लगाया जाता था । टकुर फेरू के समय में नीलम के दाम के बारे में हम ऊपर कह आए हैं ।
पन्ना-(मरकत, तार्क्ष्य ) की उत्पत्ति असुर बल के उस पित्त से मानी गई है जिसे गरुड़ ने पृथ्वी पर गिराया। प्राचीन रत्नशास्त्रों में पन्ने की खानों का वर्णन अस्पष्ट है । बुद्धभट्ट (१५०) के अनुसार जब गरुड़ ने असुर बल का पित्त गिराया तो वह • बर्बरालय छोड़कर, रेगिस्तान के समीप, समुद्र के किनारे के पास एक पर्वत पर गिरकर मरकत बना गया । यह भी कहा गया है (१४९) की वहां तुरुष्क के वृक्ष होते थे। अगस्तिमत (२८७ ) के अनुसार वह सुप्रसिद्ध पर्वत समुद्र के किनारे के पास तुरुष्कों के देशमें स्थित था । अगस्तीय रत्नपरीक्षा (७५) के अनुसार पने की दो खानें थीं एक तुरुष्क देश में और दूसरी मगध में । ठक्कुर फेरू ने (७३) मरकत के उत्पत्ति स्थान अवलिंद, मलयाचल, बर्बर देश और उदधितीर माने हैं।
मरकत के उपर्युक्त आकर की जांच पड़ताल से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रायः सब शास्त्रकार पन्ने की खान बर्बर देश के रेगिस्तान में, समुद्र तीर के निकट, मानते हैं। टालमी युग से लेकर मध्यकाल तक प्रायः सब विवरण मिस्र में विशेष कर लाल
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