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वास्तुसार- द्वितीयप्रकरण
छत्तद्धं दसभायं पंकयनालेग तेर मालधरा । दो भाए शुंभुलिए तदु वंसधर - वीणधरा ॥ ८ तिलयमज्झमि घंटा दुभाय थंभुलिय छचि मगरमुहा । इअ उभयदिसे चुलसी दीहं डउलस्स जाणेह ॥ ९ चउवीसि भाइ छत्तो बारस तस्सुदइ अट्ठि संखधरो । छह वेणुपत्तवल्ली एवं उलदए पन्नासं ॥ १० मालधर सोलससे गईद अट्ठारसंमि तावरे । हरिणिंदा उभयदि तओ अ दुंदुहिअ संखी य ।। ११ छत्तत्तय वित्थारं वीसंगुल निग्गमेण दह भायं । भामंडल वित्थारं, बावीस अट्ठ पइसारं ॥ १२ बिद्धि डउलपिंडं छत्तसमं गेहवइ नायव्यं । थणसुत्तसमा दिट्ठि चामरधारीण कायव्वा ॥ १३ जइ हुंति पंच तित्था इमेहिं भाएहिं तेवि पुण कुजा । उस्सग्गियस्स जुअलं बिंबजुगं मूल बिंवेगं । १४ ] वरिससयाओ उडूं जं बिंबं उत्तमेहिं संठवियं । विलयं (लं) गुवि पूइज्जइ तं बिंबं निक्कलं न जओ ॥ १५ मुह-नक्क- नयण - नोहिं कडिभंगे मूलनायगं चयह । आहरण-वत्थ-परिगर-चिन्हा हगि पूइज्जा ॥ १६ धाउलेवाइ बिंबं विलय (यलं ) गं पुणवि कीरए सज्जं । कटु-रण- सीलैमयं न पुणो सज्जं च कईयावि ॥ १७ पाहाणलेवकट्ठा दंतमया चित्त लिहिय जा पडिमा । अप्परिगर - माणाहिय न सुंदरा पूयमाण गिहे ॥ १८ इकंगुलाई पडिमा इक्कारस जाम गेहि पूइज्जा । उडूं पासाइ पुणो इय भणियं पुव्वसूरीहिं ॥ १९ नह-अंगुलीय-वाहा-नासा-पय भंगिणुकमेण फलं । सत्तुभय देसभंगं बंधण-कुलनास - दव्वखयं ॥ २०
१ निष्फलं । २ नाही । ३ सेल।
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