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ठकुर - फेरू- बिरचित
लिहि धुराउ पाओलि अ अह मेल पुणुवरिम | पायओलि इय कमिहिं जाव पा जंतु हवइ इम । मज्झिमद्धु उवकमिह चरिम पा जंतु पुणु विकमि । चउ गिहाई चउ वुडि जंत इय हुइ इग चय कमि ॥ ४१ तिहि" निहि' रर्सं जुर्यै वसुं करें तेर गरे । सैसि मुणि रवि” मर्णै दिसि कर्ले गुण सरे अधु पर चहु चहुठे चउसठि गिहि | रूति दे च कमिऽणुकमेगाइ लिहि ॥ ४२
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अथ विषमजंत्रानयने
ख इगाइ जहिच्छोलिंगिह संखिग जुय सपुत्र पढमोलिं । ततो मज्झिम मज्झिम गिहाउ गिह जुत्त सुकमेहिं ॥ ४३ धुरि पंति चरिम अंकाउ जत्थ अहियंकु हवइ तित्थ गिहे । सव्वगिहसंख सोहिवि लिहिज्ज इय विसमगिहजंतं ॥ ४४ जुर्गे हे लोयणे हरनयणै इंदिये मुणि अहिं । सैसि र जंतु इगाइ लिहि, इक्कासी कुट्ठेहि ॥ ४५ ॥ इति जंत्राधिकारो सम्मत्तो ॥ गाहा ८ ॥
अथ प्रकीर्णकाधिकार माह
(१) कुसुमानयनमाह
दुगुणा दुगुण जि उच्चरहि, वार वार तिहु जुत्त ।
अह जइ को कुसुमु न उब्बरइ, ता धुरि तिन्नि निरुत्त ॥ १ इक्क सुरगिहु चहु दुवारेहिं,
पत्तेय तहि जक्खु इगु वार तुल्ल तसु मज्झि सुरवइ । धम्मउ कुसुमाण वि वहल सयल बिंब अद्धद्ध सुठवइ । जंतावंत इगेगु दे सवहि वारि जक्खस्स । सेस वीस जहि उव्वरहि सव्वे कई हुइ तस्स ॥ २
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