________________
गणितसार चतुर्थाध्याय (२) अथ आम्रानयनमाह
जे पत्ता ते अंसि गुणिजहि, आइ हीण करि बुड्डि हरिजहि । लडा बिउण रूवसंजुत्ता, पंडिय ! ते जण गया निरुत्ता । सेढिय संकलिये फलसंखा, लद्ध विहत्ते हुइ फलसंखा ॥ ३ अंसु अट्ठमु कटक मज्झाउ, . गउ अंब तोडण वणिहि भक्खणत्थ आएसि राणय । चउरादि वड्त छह एण परिहि सव्वेहि आणिय । जं कटक्कु थिउ लद्ध तिहि, वीस वीस सव्वेहि।
कय जण गय कित्तउ कटकु, कई अंबाणिय तेहि ॥ ४ (३) अथ जमात्रिक वरिसोला नयनमाहगुणक थप्पिवि कमिण एगाइ, उवरुप्परि गुणिवि गुणि वार वार इकिक्कु दीजइ । वरिसोला जे हवइ सव्वि तेइ पढमह भणिज्जहि । तेवि अंक रूवाह विणु, पुव्व परिहि गुणियंति। हुइ ति ति भक्खहि सव्वि जण, पंडिय इउ पभणंति ॥ ५ गय जमाइय पंच सासुरइ, वरिसोलाऽणुकमिहि दियइ सासु तट्ठिय भरेविणु। तहं भुंजिय रहहि जि ते बिउण ति चउ पण गुण करेविणु। अंतिम सहि भक्खहि अवरि, भणहि एण बहु खद्ध । सविहि एगु सा भक्खिया, कइ थाकइ कइ खद्ध ॥ ६ (४) अथ वस्त्रफलानयनमाह
जे जण महंति हत्थं ते चउण गुणिज्ज लद्ध वत्थकरे । तं वत्थु दीहु वित्थर कर जण गुण चउण सव्वि जणा ॥ ७ वर वत्थु इगु चउदिसि इगेगु करु ठाहिउ तिहुं तिहु जणेहिं ॥ नव नव करि जणि पत्ता कइ जण वरवत्थु कइ हत्था ॥ ८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org