________________
ठक्कुरफेरूविरचित ज्योतिषसार
लत्तो पायें वेहं जुई जॉमित्तं गलगगहु प्पहं । इक्कग्गर्ल दिणदोसा चय दिक्ख पइट्ठ वीवाहे ॥ ५
॥ चक्रम् ॥
पंचुरेहा पण तिरिय रेहा, पत्तेय चउकूणिहि बिन्नि रेहा । वामस्स कूणग्गहि बीयरेहा, कित्तीयमाई मुणि लत्तवेहा ॥ ६
॥ पंचशलाकाचक्रम् ॥ रवि- कुज - गुर - सणिकमसो बारह ति छ अट्ठ पुरउ लत्तं ति । पुन्निम ससि बुह भिगु तम पच्छा बावीस सत्त पंच नवं ॥ ७ वित्तहेरं भयजणणे मरणें कलह च बंधुनासयरं । कजविर्णासं गमण मरणं सूराइलत्तफलं ॥ ८
॥ इति लातः॥ मह चित्ता असलेसा रेवइ अणुराह सवण इय पाओ। रविरिक्खाओ ठविजइ अस्सिणिमाईणि जोइज्जा ॥ ९
॥ इति पातम् । वज्रपातकरम् ॥ ससिहरनक्खत्ताओ जइ हुइ गहु इक्कि रेह बीयदिसे । ता जाणिजहु वेहं परिहरियवं जओ भणियं ॥ १० रवि - कुजवेहे विहवा बुहि वंझा भिगु अउत्त सणि दासी । गुरवेहेण तवस्सिणी विलासिणी राहवेहेणं ॥ ११ उत्तरसाढंतपए सवणाइमघडिय चारि अब्भीई। तत्थट्ठिए गहेणं उप्पज्जइ रोहिणीभेयं ॥ १२ परिहरिवि विडपायं करिज कजं असंकियं नृणं । सप्पस्स दट्ठ अंगुलिछेए ता हवइ कत्थ विसं ॥ १३
॥ इति वेधः॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org