SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ लग्नद्वार जा जहि काले छाया दिणडछाया वि हीण संकजुया । दिणमाणं छ च गुणतेण फलं दिवसगयसेसं ॥ ३५ ॥ गतशेषदिनम् ॥ दिवसद्ध संकजुयं गयघडियफलेण मज्झछायजुयं । संकूणे सेसअंगुल जहिच्छकालस्स छायवरं ॥ ३६ ॥इति इष्टच्छाया ॥ संकपहावग्गजुयं तस्स पए कंनु कन्नवग्गाओ। सोहेवि संकवग्गं सेसस्स पए हवइ छाया ॥ ३७ ॥ कर्णच्छाया ॥ वासरभुत्त घडी पल संपइ तिहि वार रिक्ख जोयजुयं । तं तकालियवारं तिहिरिक्खं जोय जाणेह ॥ ३८ ॥तिथ्यादितकालिक योग । ॥ इति परमजैन श्री चन्द्राङ्गज-ठकुरफेरू-विरचिते ज्योतिषसारे गणितपदं तृतीयं द्वारं समाप्तम् ॥ [चतुर्थ लनद्वारम्] गुरखित्तगए सूरे रविखित्ते जीउ गुर-रविक्कि गिहे। .. सुके य सुरगुरे वा बाले वुड्डे य अत्थमिए ॥ १ तिन्नि दह दियह बाले पक्खं पण दियह भिगु सुए वुड्डे । पुव्यावरसुकमेणं तिदिण गुरू बाल पण बुड्ढे ॥२ हरिसयण अहियमासे रवि-ससिगहणाउ जाव सत्त दिणा । संकंति पढम अग्गिम इय ति दिण दिणत्तयाईए ॥ ३ जिट्ठस्स जिट्ठमासे वइधिइ वितिपाय विट्ठि ससि नट्टे । न हु लग्गं दायव्वं जम्मदिणे जम्मभे मासे ॥ ४ ॥ इति वर्ष-मासादिनिषेधः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy