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ठकुरफेरूविरचित ज्योतिषसार मुत्तेगौरसठाणे संठिय पिक्खंति पुन्नदिट्ठि गहां। लग्गं गहाण दिट्ठी गणिज वामं विणा राहू ॥ २७
अन पुनः केचिदेवमाहुःदो वारहंधा य छहट्ठ पाओ, दिट्ठी य अद्धं तिय गारसाओ। पंचो नवं ठाण गहाण पउणं, चउकिंद दिट्ठी पर(रि)पुन्न नूणं ॥ २८
अथवातिय दसमगो य मंदो तिकोणगो ५। ९ जीओँ अट्ठ-चउ भूमो। सुक्क-रवी बुह-चंदा पुन्नं पिक्खंति जायाओ ॥ २९
॥ इति ग्रहाणां दृष्टिः॥ जा तिय ता न विकप्पं तियहिय किंदं खडाउ हीलिज्जा। खडु खडहियाउ हीणा नवहिय चक्काउ सोहि भुजं ॥ ३०
__॥इति भुजम् ॥ चरखंडपिंडविउणं ख-छ लद्धं तीसे जुत्त परमदिणं । कक्कयणं सूणदिणे निसिद्ध दिणमाणु मिस्सु भवे ॥ ३१
॥ इति परमदिन-मिश्री॥ अयणंसजुत्तसूरं भुजकंमं करिवि सेस जं रासी । तं चरखंडियभुत्तं भुजेहि गुणिज्ज अंस कला ॥ ३२ हरिऊण तीसि भायं लद्धपलं जुत्त भुत्त खंडिचरं । तं पनरहिजुय हीणं अज तुल कमि बिउण दिणरयणिं ॥ ३३
॥ इति दिन-रात्रिमानम् ॥ परमदिणाओ हीणं इच्छिपय दिणमाणु सेस सत्तिहयं । पंचे फल बारसंगुले संकस्स दिणद्धछाय धुवं ॥ ३४
॥ इति मध्याह्नच्छाया ॥
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