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राजविनोद महाकाव्य
पोरोजशाहेः समयेऽथ जज्ञे श्रीगूर्जरत्रा भुवि पादशाहिः ।
मुज्जफुराह्वः (१) खगुणान्धिचन्द्रमितेषु ( १४३०) वर्षेषु च विक्रमार्कात् || १४ || अहमदशाहिर्जज्ञे (२) तत आशेष्वन्धिचन्द्रमितवर्षे (१४५४) दिग्रसवेदेन्द्वब्दे (१४६८ ) योऽस्थापयदहिमदाबादम् ।। १५ ।।
महमुद (३) कुतुबदीन (४) शाहिमहिमुंद ( ५ ) वेगडस्तवन । यो जीर्णदुर्गचम्पकदुर्गे जग्राह ॥ १६ ॥
युद्धेन
उल्लास २; पृ० १३ । इतिहास के विशेषज्ञ इन वंशावलियों की छानबीन करके इन पर विशेष प्रकाश डालेंगे ।
राजविनोद महाकाव्य का रचयिता उदयराज अवश्य ही महमूद का दरबारी कवि था क्योंकि उसने इस काव्य में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। यह विचारणीय है कि धार्मिक कट्टरता के लिये प्रसिद्ध महमूद ने* उदयराज जैसे हिन्दू पण्डित को अपने आश्रय में कैसे रक्खा | यों तो इस काव्य के रचनाकाल का निर्धारण करने के लिये यह कहा जा सकता है कि महमूद के शासन काल १४५८ ई० से १५११ ई० के बीच में ही यह लिखा गया था परन्तु अवश्य ही यह उस समय रचा गया होगा जब महमूद का भाग्य उदय के शिखर पर पहुँच चुका था। प्रस्तुत hara के चतुर्थ सर्ग में उन सभी राजाओं का वर्णन आया है जिनको महमूद ने अपने आधीन कर लिया था । इसके अतिरिक्त अलग अलग राजाओं के पद और सम्मान आदि का भी इस सर्ग के पद्यों से पता चलता है:--
“राज्ञोऽस्य वेत्रवरवत्तपदावकाशान्देशाधिपान् सदसि कृतप्रवेशान् ।"
इस प्रसङ्ग में मालवराज और दक्षिणनृप का वर्णन इस प्रकार है:
'वेषं विशेषरुचिरं दधतादरेण हस्तारविन्दसमुदञ्चितचामरेण । राजा विराजतितरां परिहृष्यमानो गोष्ठीषु दक्षिणत्वेन विचक्षणेन ||१०|| स० ४.
एतस्य चण्डभुजदण्डपराक्रमेण निःशेषखण्डितरणाङ्गगशौण्डभावः । सर्वस्वमेव निजजीवितरक्षणाय दण्डं समर्पयति मालवमण्डलेशः ॥ ११॥ स० ४
फिर ७ वें सर्ग में 'मालव' के लिए लिखा है: --
"त्यक्त्वा लुंठित देशकोशविषयो दुर्गमानग्रहं राजन् जीवितमात्रलाभमधुना कांक्षत्यसौ मालवः ॥ २६ ॥
१, स०४
सम्भवतः दक्षिण के निजामशाह पर जब मालवा के महमूद खिलजी ने १४६२-६३ ई० हमला किया तब सुलतान महमूद ( बेगडा ) ने जो मालवा के विरुद्ध सैनिक सहायता दी थी,
* महमूद ने अपने आज्ञाकारी गिरनार के माण्डलिक राजा को इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिये बाध्य किया । (देखो डा. एस. के. बनर्जी कृत 'हुमायूं बादशाह' संस्करण १९३८ पृ० ११२ और कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया, भा० ३, पृ० ३०५ ) ।
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