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________________ [५ प्रास्ताविक परिचय यहाँ उसी से अभिप्राय है ; यदि यह सच है तो यह काव्य १४६३ ई० के बाद का रचा हुआ होना चाहिए । इसी चतुर्थ सर्ग के बारहवें श्लोक में मेवाड़ के राणा कुम्भा का वर्णन है: "यः पार्थिवः खलु कुम्भकर्णः कर्णेन वर्णमुचितं सहते तुलायाः।। सोऽयं करोति महमूदनृपस्य सेवां दण्डे वितीर्णवरभूरिसुवर्णभारः ॥१२॥ इसके अतिरिक्त सातवें सर्ग में भी मेदपाट के राजा का जिकर है । इससे स्पष्ट है कि महमूद और राणा कुम्भा समकालीन थे । राणा कुम्भा* ने १४३३ से १४६८ ई० तक राज्य किया था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि “राज विनोद” का रचना काल १४६२ से १४६६ के बीच में है। दोहाद के शिलालेख (१४८८ ई०) में बहुत सी उन घटनाओं का भी उल्लेख मिलता है जिनका राजविनोद में कोई वर्णन नहीं है । यदि राजविनोद के रचना काल के विषय में उपरोक्त अनुमान ठीक मान लिया जावे तो इसका समाधान सहज ही में हो सकता है । क्योंकि शिलालेख का समय राज विनोद के समय से लगभग २० वर्ष बाद का है जिसमें महमूद के १४५८ ई० से १४८८ ई० तक ३० वर्षों के राज्यकाल का वर्णन मिलता है। . दोहाद के शिलालेख की भाषा, शैली और विषय को देखते हुए यह भी एक धारणा बनती है कि सम्भवतः राजविनोद नामक ऐतिहासिक काव्य और दोहाद के शिलालेख, दोनों का रचयिता एक ही हो। इन दोनों की समानता के कुछ अंश इस प्रकार हैं:-- * महाराणा कुम्भा वि० सं० १४६० (ई० सं० १४३३) में चित्तौड़ के राजसिंहासन पर बैठा ।...............पिछले दिनों में महाराणा को उन्माद रोग हो गया था ।...... एक दिन वह कुम्भलगढ़ में मामादेव (कुम्भ स्वामी) के मन्दिर के पास जलाशय के तट पर बैठा हुआ था उस समय उसके राज्यलोभी पुत्र ऊदा (उदयसिंह) ने कटार से उसे अचानक मार डाला। यह घटना वि० सं० १५२५ (ई० सं० १४६८) में हुई। (श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा कृत 'राजपूताने का इतिहास' पृ० ६३३-६३४) इस सम्बन्ध में देखिए--मुहाणोत नैणसी की ख्यात, पत्र १२, पृ० १ । वीर विनोद, भा० १ पृ० ३३४ । इतिहास और शिलालेखों के आधार पर महमूद और राणा कुम्भा में कोई लड़ाई होना अथवा राणा का उसके आधीन होना नहीं पाया जाता है । महमूद के पूर्वज कुतुबुद्दीन से अवश्य ही कुम्भा का युद्ध हुआ था जबकि उसने मालवा के महमूदशाह के साथ मिल कर चित्तौड़ पर आक्रमण किया था । इस युद्ध में कुतुबुद्दीन और मालवा का सुलतान दोनों ही रागा से हार कर अपने अपने देशों को लौट गए थे। (देखिए--वि० सं० १५१७ (ई० स० १४६०) मार्ग बु० ५ का कीर्तिस्तम्भप्रशस्ति लेख) । ... प्रस्तुत काव्य में कवि परम्परा के अनुसार ही कवि ने अपने प्रशंसनीय सुलतान के समकालीन, प्रसिद्ध और पराक्रमी कुम्भा को उसके आधीन होना लिख दिया है । डा० साँकलिया द्वारा सम्पादित दोहाद के शिलालेख में भी कुम्भा का महमुद के साथ कोई सम्बन्ध वर्णित नहीं है । (सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003398
Book TitleRajvinod Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages80
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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