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राजविनोद महाकाव्य का रक्षक बतलाया है, मानो वह कोई कट्टर हिन्दू राजा हो । कवि ने क्षत्रिय राजा के समान वर्णन करते हुए लिखा है कि वह राजन्यचूड़ामणि है, श्री और सरस्वती दोनों उसकी सेवा करती है दानवीरता में वह कर्ण से भी बढ़ कर है और उसके पूर्वज मुजफ्फरखाँ ने श्रीकृष्ण की कलिकाल के विरुद्ध सहायता की थी। यह चरित्र सात सर्गों में वर्णित है । पहले सर्ग में २६ श्लोक हैं और इसमें सुरेन्द्र-सरस्वती-सम्वाद रूप से काव्य की भूमिका बाँधते हुए यह वर्णन किया है कि ब्रह्मा ने इन्द्र को सरस्वती की खोज करने के लिये भेजा । इन्द्र ने उसे महमूदशाह के सभामण्डप में पाया । सरस्वती ने अपने वहाँ रहने का कारण बताते हुए महमूद का कोर्तिगान किया । दूसरे सर्ग का नाम 'वंशानुकीर्तन' है। इसमें ३१ श्लोक हैं और महमूदशाह की वंशपरम्परा का वर्णन है । इसमें दिया हुआ वंशानुक्रम इतिहास के अनुसार सही ज्ञात होता है । "सभा समागम' नामक तीसरे सर्ग मे ३३ श्लोकों में महमूद के सभा प्रवेश को वर्णन है । दरबार में कौन-कौन से राजा
और सभ्य उपस्थित होते थे, इसका वर्णन सर्वावसर नामक चतुर्थ सर्ग में ३३ श्लोकों में किया गया है । पाँचवे सर्ग में सङ्गीतरङ्गप्रसङ्ग का ३५ श्लोकों में वर्णन है और छठे सर्ग में विजययात्रोत्सव वर्णन के ३६ श्लोक है । सातवें सर्ग का नाम 'विजय लक्ष्मीलाभ' है और इसमें ३७ श्लोकों में मह मद के सामरिक पराक्रम का वर्णन है । पातशाह की उदारता के अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन से ज्ञात होता है कि कवि को उसके दरबार से पर्याप्त दक्षिणा मिली होगी अथवा मिलने की आशा रही होगी।"
अहमदाबाद के प्रसिद्ध सुलतान महमूद बेगड़ा (१४५८ ई० १५११ ई०) के दरबारी कवि उदयराज विरचित ऐतिहासिक काव्य की इस दुर्लभ प्रति* पर यह टिप्पणी पर्याप्त नहीं है। सामान्यतः गुजरात के इतिहास और विशेषतः गुजरात के सुलतानों के इतिहास में रुचि रखने वाले एवं अन्य साहित्यिक अभिरुचि वाले विद्वानों के परिचय के लिए यह दुष्प्राप्य ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है । इसकी प्रति भाण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना से प्राप्त की गई है और इसी संस्थान के संग्रहाध्यक्ष श्री पी० के० गोडे के मन्तव्यानुसार इस काव्य को आवश्यक टिप्पणियों सहित प्रस्तुत किया गया है।
राजविनोद के प्रत्येक सर्ग के अन्त में निम्नलिखित पद्य दिया हुआ है जिसमें सुलतान महमूद के वंशानुक्रम का वर्णन है:--
श्रीमान् साहिमुदफ्फरः समजनि श्रीगूजरमापत्रिस्तस्मात्साहि महम्मदस्समभवत्साहिस्ततोऽहम्मदः । जातः साहिमहम्मदोऽस्य तनुजो गायासदीनाख्यया
ख्यातः श्रीमहमूदसाहिनृपति यात्तदीयात्मजः ॥ एपिग्राफिका इन्डिका जि० २४ भाग ५, जनवरी १९३८ पृ० २१२ पर डाक्टर एच.)
* आफेट ने 'राजविनोद' की भाण्डारकर मंग्रहालयवाली प्रति के अतिरिक्त और किसी प्रति का उल्लेख नहीं किया है । (CC I. 502). कृष्णमाचारि ने भी History of Classical Sanskrit Literature, Madrass, 1937 P. 271, 433 में इसी एक प्रति का उल्लेख किया है।
+ गव्हर्नमैन्ट मैनिस्क्रिप्ट लाइब्रेरी, भा. ओ. रि इ. पुना, मं० १८ । १८७४-७५ ।
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