________________
२० ]
राजविनोद महाकाव्य
परन्तु इससे उसको संतोष नहीं हुआ और वह फिर गिरनार पर हमला करने का बहाना ढूंढने लगा । दूसरे ही वर्ष उसे बहाना मिल भी गया ।
राव माण्डलिक राजचिन्हों को धारण किए हुए किसी मन्दिर में पूजा करने के लिए गया । जब महमूद को यह समाचार मिला तो उसे वह सहन नहीं कर सका और तुरन्त चालीस हजार फौज लेकर राव को शिक्षा देने के लिए रवाना हो गया। राव में इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि वह मुसलमानों का सामना करता इसलिए उसने मुँहमाँगा कर दे दिया और राजचिह्न भी सुलतान को भेंट कर दिए। परन्तु यह सब व्यर्थ हुआ और परम शूरवीर पृथ्वीराज चौहान का यह कथन कि 'एक बार उड़ाई हुई मक्खी की तरह शत्रु भी फिर फिर कर वापस आता है' उस पर ठीक ठीक लागू हो गया । उसी वर्ष के अन्त में महमूद ने सोरठ पर फिर चढ़ाई कर दी। राव ने अपनी प्रजा को संकट से बचाने के लिए फिर मुँहमाँगा धन देना चाहा परन्तु महमूद ने उसे इसलाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया । राव ने कुछ उत्तर न देकर किले के दरवाजे बन्द कर लिए और महमूद ने घेरा डाल दिया। अन्त में, राव ने देखा कि उसके दुःखों का अन्त नहीं है तो उसने किले की चाबियाँ सुलतान को सौंप दी और उसके कहने के अनुसार क़लमा पढ़ लिया । (१४७० ई०) १
इस विजय के अनन्तर महमूद ने विभिन्न प्रांतों से बहुत से सय्यदों और विद्वानों को सोरठ में बसने के लिए बुलाया और एक नगर भी बसाया । इस नगर का नाम मुस्तफाबाद पड़ा । कहते हैं, यह नगर बहुत जल्दी ही तैयार होकर राजधानी की समानता करने लगा था। वर्ष का कुछ भाग महमूद यहीं बिताता था ।
जब वह इस नए नगर के भवनों का निरीक्षण कर रहा था उसी समय यह समाचार मिला कि कच्छ के निवासयिों ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया है इसलिए वह उधर चढ़ चला और बहुत जल्दी ही उनको अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर लिया। इसके अनतन्र महमूदशाह ने सिन्ध के जाटों और बलूचियों पर चढ़ाई की और सिन्धु नदी तक देश के अंतरंग में घुसता चला गया । ये घटनाएं ई० स० १४७२ में हुई ।
सिन्ध की चढ़ाई के बाद महमूद ने जगत (द्वारका) और शङ्खोद्वार (बेट) द्वीप के सरदारों पर चढ़ाई की। इसका कारण यह बतलाया जाता है कि मौलाना मोहम्मद समरकन्दी ने सुलतान के पास आकर द्वारका व बेट द्वीपके ब्राह्मणों की शिकायत की और महमूद ने उधर चढ़ाई कर दी। उसने द्वारका की बहुत सी
(१) मीरा सिकन्दरी के लेखक का कहना है कि रावने सुलतान के कहने से इसलाम धर्म स्वीकार नहीं किया था वरन् एक फक़ीर का चमत्कार देखकर ऐसा किया था । उसे यह बोध देने वाले रसूलाबाद के पीर शाहआलम थे |
(२) कॉमिसरियट् -- हिस्ट्री आफ गुजरात, भा० १ (१९३८), पृ० १३०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org