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महमूद बेगड़ा का वंश-परिचय कि मुहम्मदशाह के पुत्र फतहखाँ को गद्दी पर बिठाना चाहिए क्योंकि उसमें बादशाह होने के गुण भी पाए जाते हैं और आकृति में भी वह भव्य है।
फतहखाँ महमूदशाह के नाम से हि० स०८६३ (१५१० ई०) के शअबान मास की पहली तारीख, रविवार के दिन अहमदाबाद में तख्त पर बैठा । उस समय उसकी अवस्था तेरह वर्ष की थी ।' यही महमूदशाह आर्गे चल कर महमूद बेगड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुआ और यही राजविनोद काव्य का चरित्र-नायक है।
तख्त पर बैठने के थोड़े ही दिन बाद कुछ अविचारशील सरदारों ने वजीर ईमादउल मुल्क के साथ झगड़ा करके उसको मार देने का षड्यन्त्र किया। परन्तु, सुलतान ने धीरज और चतुराई से ऐसी व्यवस्था की कि सब विद्रोह शांत हो गया और इसके बाद में वजीर के विरुद्ध सर उठाने की किसी भी सरदार की हिम्मत न पड़ी। ___ सन् १४६७ ई० में महमूद ने सोरठ पर चढ़ाई की परन्तु इस बार उसको विशेष सफलता नहीं मिली इसलिए उसने बहुत से जवाहरात और नकदी की भेंट लेकर राव से शत्रुता बन्द कर देने की आज्ञा दे दी। (महमद बेगाडा का पहला नाम) का सौतेला भाई था और शुरू से ही उससे द्वेष रखता था। फतह खाँ को माता सिन्ध के बादशाह जाम जानु- हन की पुत्री थी। उसका नाम बीबी मुधली था। उसकी दूसरी बहन बीबी मिरधी थी। पहले उनके पिता ने बीबी मिरधी की शादी गुजरात के सुलतान मुहम्मदशाह के साथ और मुधली की हजरत कुतुबुल आफताब के पुत्र हज़रत शाह आलम के साथ करने का निश्चय किया था । परन्तु बीबी मधुली अधिक सुन्दरी थी इसलिए मुहम्मदशाह ने अपनी सत्ता और द्रव्य के दबाव से उसकी शादी अपने साथ करवाली । बीबी मिरधी का विवाह हज़रत शाह आलम के साथ हो गया। पुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन के व्यवहार से असन्तुष्ट होकर मुघली अपने पुत्र फतह खाँ को लेकर शाहआलम के आश्रय में आकर रही। कुछ समय बाद बीबी मिरधी को मृत्यु हो गई और मुधली ने शाहआलम के साथ पुनर्विवाह कर लिया। इस प्रकार फतहखां का पालनपोषण व शिक्षा दीक्षा हज़रत शाह आलम ही ने किया । बीबी मुधली ने अपनी सेवाओं से प्रसन्न करके उनसे फतहखाँ के लिए गुजरात के तख्त का वरदान भी प्राप्त कर लिया था। कुतुबखां ने कई बार फतह खाँ को मार देने के प्रयत्न किए परन्तु हज़रत ने उसकी हर बार रक्षा की। राजविनोद महमूद को प्रशस्ति में उसके आश्रित कविं द्वारा रचा हुआ काव्य है अतः इसमें कुतुब का उल्लेख जानबूझ कर नहीं किया गया है । कविने तो यहां तक किया है कि कुतुबुद्दीन ने राणा कुम्भा पर जो विजय प्राप्त की थी उसका श्रेय भी अपने वर्णनीय आश्रयदाता महमूद को ही दे दिया है । वास्तव में राणा कुम्भा और महमद बेगड़ा में किसी युद्ध का होना इतिहास में नहीं पाया जाता है । (सं.)
(१) मीराते सिकंदरी (२) रासमाला ।
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