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राजविनोद महाकाव्य तब इस नवीन शत्रु के सामने मुहम्मदशाह न टिक सका और बुरी तरह हारकर लौट गया । थोड़े ही समय बाद हि० स० ८५५ (ई० १४५१-५२) के मोहर्रम मास की २०वीं तारीख को उसकी मृत्यु हो गई।२
मुहम्मदशाह के बाद हि० स० ८५५ (१४५१ ई०) के मोहर्रम मास की ११ वीं तारीख को उसका बड़ा शाहजादा कुतुबउद्दीन तख्त पर बैठा । उसी समय उसे मालूम हुआ कि राजधानी से कुछ ही मील की दूरी पर मालवा के सुलतान की सेना आ पहुँची है इसलिए आगे बढ़कर उसका सामना किया। मालवा के महमूद खिलजी को वापस लौटना पड़ा और कुतुब की जीत हुई । इसके बाद इन दोनों सुलतानों ने मिलकर हिन्दुओं के विरुद्ध युद्ध-योजना करते रहने की प्रतिज्ञा की और मेवाड़ के राणा कुम्भा के राज्य को आपस में बाँट लेने का मनसूबा किया।
मुजफ्फरशाह के भाई का वंशज शम्स खां उस समय नागौर का स्वामी था इसलिए उसने राणा के विरुद्ध सहायता करने के लिए कुतुबशाह से प्रार्थना की। शाह ने अपनी फौजें उसकी सहायता के लिए भेजी परन्तु राणा ने उन्हें बुरी तरह हरा दिया। इस पर कुतुबशाह फिर नागौर की तरफ स्वयं रवाना हुआ और मेवाड़ के अधीनस्थ सिरोही के राजपूतों को जीत लिया। फिर वह पहाड़ी मार्ग से कुम्भलमेर के किले की ओर बढ़ा परन्तु बीच ही में राणा ने उस पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद राणा में और कुतुबशाह में सन्धि हो गई।
अब, मालवा के सुलतान ने कुतुबशाह को फिर भड़काया और चम्पानेर के स्थान पर राणा के राज्य को आपस में बांट लेने की संधि पर हस्ताक्षर किए । दूसरे वर्ष, कुतुबशाह ने फिर आबूगढ़ को जीत लिया। वहाँ कुछ फौज छोड़कर वह सिरोही पहुँचा और एकबार फिर राणा से संधि हो गई । अगले वर्ष १४५८ ई० में राणा ने फिर नागौर पर चढ़ाई की। बहुत देर करके कुतुबशाह उसका सामना करने के लिए रवाना हुआ और जय प्राप्त करता हुआ कुम्भलमेर की तरफ़ बढ़ा परन्तु उसको बीच ही में रुकना पड़ा । इसके थोड़े ही दिनों बाद वह अहमदाबाद लौट गया और मर गया।
कुतुबउद्दीन के बाद हिजरी सन् ८६३ (१४५८-५६) के रजब महीने की २३ वीं तारीख को अहमदशाह का पुत्र दाऊद गद्दी पर बैठा । परन्तु वह बिलकुल अयोग्य सिद्ध हुआ 3 इसलिए गुजरात के अमीरों व उच्च राज्याधिकारयों ने निर्णय किया (१) रासमाला (२) अथवा उसको जहर दे दिया गया । देखो रासमाला;
- मीराते सिकन्दरी, तवारीख अहमदशाही । ३ राजविनोद में कुतुबुद्दीन और दाऊद का कोई वर्णन नहीं है । दाऊद का नाम न होने का तो कारण स्पष्ट है क्योंकि उसने केवल ७ ही दिन राज्य किया परन्तु कुतुबुद्दीन ने तो ८ वर्ष के लगभग राज्य किया था और मेवाड़ के राणा व मालावा के सुलतान से युद्ध करके उसने कीर्तिलाभ भी किया था। अन्य हिन्दू एवं मुसलमान इतिहासकारों ने उसका उल्लेख किया है । इसका कारण यह प्रतीत होता है कि कुतुबुद्दीन फतहखाँ
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