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________________ महमूद बेगड़ा का वंश-परिचय [१७ एक खड्डे में गिरकर मर गया और उसके पुत्र नारायणदास ने चांदी के तीन लाख टंक वार्षिक कर देना स्वीकार करके संधि करली । परन्तु दूसरे ही वर्ष १४२८ ई० में वह संधि टूट गई और अहमदशाह ने १४ नवम्बर को वह किला जीत लिया। वहीं पर उसने एक विशाल मसजिद भी बनवाई । इसके बाद (३५ हि०, १४३१ ई०) दक्षिण के बहमनी सुलतान, सालसेट, माहिम और बम्बई द्वीप पर सुलतान ने विजय प्राप्त की। दिव, घोघा और खम्भात के द्वीप भी गुजरात के इस सुलतान के अधिकार में थे। कितनी ही बार गुजरात की विजयिनी सेना इन द्वीपों से सोने चांदी और जरकशी के कपड़े व जवाहरात लेकर घर लौटी थी। अहमदशाह की मृत्यु ४ जुलाई सन् १४४३ ई० को अहमदाबाद नगर में हुई और उसको जामा मसजिद के सामने दफ़नाया गया । गुजरात के सुलतानों में अहमदशाह को बहुत प्रजाप्रिय और न्यायी सुलतान के रूप में याद किया जाता है । एक कवि ने उसके लिए लिखा है कि "हे राजा! तेरे न्यायपूर्ण समय में किसी मनुष्य को फरियाद करने की आवश्यकता नहीं पड़ी ।" यह कविता प्रेमी और गुणग्राहक था । ___ अहमदशाह के बाद उसका पुत्र मुहम्मदशाह गद्दी पर बैठा । यह बहुत विलासी था और राजकाज में विशेष रुचि नहीं रखता था। इसमें बादशाह के पदयोग्य बुद्धि भी नहीं थी; परन्तु, वह बहुत उदार था इसीलिए उसको लोग 'जरबख्श' कहते थे । गद्दी पर बैठते ही उसने ईडर पर चढ़ाई की । राव कुछ दिनों तक तो इधर उधर पहाड़ियों में छिपता रहा, बाद में उसने अपने अपराधों के लिए क्षमा माँग लो । १४४६ ई० में सुलतान ने चम्पानेर" के रावल गंगादास पर चढ़ाई को और उसको हराकर किले में भाग जाने के लिए बाध्य किया। परन्तु, गंगादासने बाद में मालवा के खिलजी सुलतान को अपनी सहायता के लिए राजी कर लिया (१) फरिश्ता । (२) इन सब घटनाओं का उल्लेख राजविनोद के इस श्लोक में किया गया है - विभज्य दुर्गाणि निहत्य वीरान् हठान महाराष्ट्रपति विजित्य । जग्राह रत्नाकरसारजातमनर्गलैर्यः स्वबलैर्बलीयान् ॥१२॥ रा० वि० सर्ग २. (३) कुर्वन्तु गर्व बहवोऽप्यखर्वमुर्वीश्वराः श्रीगुणगौरवेण । अहम्मदेन्द्रस्य जतानुरागसौभाग्यलेशं न परे लभन्ते ।।१३। रा० वि० सर्ग २. (४) रूपश्रियैव विजितः समभून् मनोभू : श्रीमन्महम्मदनराधिपतेरनङ्गः । ___अस्य स्त्रियः खलु जगज्जयिनोऽपि तस्य वीक्ष्यैव तत्क्षणममुं विवशीबभूवुः।।१६।। रा० वि० सर्ग २. (५) रा०वि० १७,१६ सर्गः २; (६) मीराते सिकन्दरी । (७) रा०वि० १८, स० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003398
Book TitleRajvinod Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages80
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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