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________________ १६] राजविनोद महाकाव्य उसी वर्ष के अन्त में फीरोज खाँ ने फिर राजगद्दी का दावा किया और मोड़ासा के स्थान पर अपना झण्डा खड़ा किया। ईडर का राव रणमल भी उसके साथ हुआ परन्तु शाह ने रूपनगर स्थान पर उनको परास्त कर दिया और राव व फोरोज खाँ प्राण बचाकर पहाड़ियों में भाग गए। थोड़े दिन बाद राव में और फीरोज खां में भी अनबन हो गई और रणमल ने उसके हाथी और घोड़ छीन कर शाह को भेंट कर दिए । मालवा के सुल्तान हुशंगशाह ने गुजरात के शत्रुओं को आश्रय दिया तथा इस देश पर १४११ ई० व १४१८ ई० में हमले किये परन्तु शाह ने उसको हर बार परास्त कर दिया। अहमदशाह ने भी १४१६ ई० में मालवा पर हमला किया और हुशंगशाह को भागकर माँ के किले में शरण लेनी पड़ी' । १४२२ ई० में अहमदशाह ने फिर मालवा पर आक्रमण किया परन्तु वह माँ के किले पर अधिकार करने में सफल न हुआ । हि० स० ८१७ (१४१५ ई० ) में अहमदशाह को गिरनार का किला देखने की इच्छा हुई इसलिए उसने विद्रोहियोंको उसी दिशा में खदेड़ा। उस समय तक सौराष्ट्र के किसी भी राजा ने मुसलमानों के आगे सिर नहीं झुकाया था इसलिए सोर के राजा पर शेर मलिक को आश्रय देने का बहाना बना कर शाह ने उस पर आक्रमण कर दिया। हिन्दू राजा ने सामना तो किया परन्तु मुसलमानों की युद्धप्रणाली से अनभिज्ञ होने के कारण वह जल्दी ही हार गया और भाग खड़ा हुआ । शाह ने गिरनार के किले तक उसका पीछा किया। इसके बाद कुछ वार्षिक कर देना स्वीकार करलेने पर वह अहमदाबाद लौट गया । रास्ते में उसने सिद्धपुर के देवालयों को नष्ट करके बहुत सा धन व जवाहरात प्राप्त किए । गुजरात बलशाली राजाओं के अतिरिक्त छोटे छोटे सरदारों को भी वश करने व उनसे कर वसूल करने में अहमदशाह को खूब प्रयास करना पड़ा था। ये लोग अपने अपने किलों में छुप जाते थे और जंगलों में भाग जाते थे इसलिए इनसे कर वसूल करने में बहुत कठिनाई पड़ती थी । अन्त में शाह ने इन पर वार्षिक कर नियुक्त कर दिए और इनकी जमीनें व किले इनको वापस कर दिये । १४२६ ई० में शाह ने फिर ईडर पर विजय प्राप्त करने की इच्छा की । वह जानता था कि ईडर के राज्य पर अधिकार रखना उसके काबू से बाहर की बात थी । वह यहाँ का क़िला कभी भी न ले सका था; इसलिए उसने यहाँ के रावों पर आतंक जमाने के लिए हाथमती नदी के किनारे एक विशाल किला बनवाना शुरू किया । यह किला ईडरगढ़ पर झुके हुए पर्वत शिखरों पर से स्पष्ट दिखाई पड़ता था । बादशाह ने इसका नाम अहमदनगर रक्खा । तत्कालीन ईडर का राव पूँजा तो १ “हुशङ्गशा हेरधिवास दुर्गमाक्रामता मण्डपमाग्रहेण । येनोच्चकै राचकृषे करेण पदे पदे मालवमण्डलश्रीः ||११||" रा० वि० सर्ग २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003398
Book TitleRajvinod Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages80
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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