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________________ ७६ अध्याय २ --रीति-काव्य चतुर्थ इस पुस्तक में ६ सर्ग हैं--- प्रथम - नृपतिवंसवर्णन, द्वितीय -- संज्ञानिबंधनोनामद्वितीय सर्गः, तृतीय --वर्णवृत्तिनिरूपण, - मात्रावृत्तिनिरूपण, पंचम - वर्णप्रस्तारादिनिरूपण, षष्टम ___ -- मात्राप्रस्तारादिनिरूपण । इस प्रकार के सर्गों में विभाजन को देख कर बहुत संतोष होता है कि पुस्तक में बड़े ढंग से सारी संबंधित बातें एकत्रित कर ली गई हैं। पहला सर्ग तो नृपति के वंश से संबंधित है, किन्तु अन्य पांच सर्गों में 'छंद' का विश्लेषण किया है। लक्षण उदाहरण बहुत करीने से दिए हैं । दो उदाहरण देखें१. मालिनी- नगण दुइ बनावौ, फेरि मो लै मिलाऔ । यगण यग मला को, पाद योंही धराऔ ।। पद पद यम देके, च्यारि हू चर्ण होई। कवि जन इमि जानौ, मालिनी छंद सोई॥ २. दोहा- पूर्व उत्तर तेरह कला, पर ग्यारह करि ठांनि । तेरह ग्यारह राषि के, दोहा छंद बपानि ।। इन दो उदाहरणों से दो-तीन बातें विदित होती हैंअ. लक्षण और उदाहरण एक हो छंद द्वारा दे दिया गया है. मालिनो देखिए। दो नगण फिर मगण पुनः यगण-यगण अर्थात् 'न न म य य' प्रा. परन्तु छंद के अर्थ में कुछ विशेष सार्थकता या चमत्कार नहीं है केवल कामचलाऊ प्रतीत होता है। इ. लक्षण कुछ अधूरे हैं। दोहे का लक्षण पूरा नहीं है । अंत में __ क्या होना या न होना चाहिए इसका कोई वर्णन नहीं है। केवल मात्राओं की संख्या ही बताई गई है। इतिहास की दृष्टि से पहला सर्ग भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कवि ने अनेक पीढ़ियों का वर्णन लिख दिया है, जैसे कि यह किसी 'जागा' को बही हो। पहले कृष्ण, गणेश, सरस्वती, शिव और कवियों की स्तुति की है-- तिन पुरुषन के वंस में, प्रगटे श्री महाराज । तिन को कुल वरनत अब, रामलाल कविराज ।' १ कवि का पूरा नाम 'रामलाल' था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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