________________
मत्स्य देश को हिन्दी साहित्य को देन दान कू विचारि कै निहारि या समे को रूप , भूप न रहे हैं लषि लीजै राज सों न हैं ।। भनत रमेस बिन त्यागे या दरिद्र देस , होत न नरेस संग छांड बिन भौन हैं । एरे जर जौहरी जवाहर दिषावै कहा ,
परष करैया लघु गाम इहां कौन है ॥ यह रमेश नाम के किसी अन्य कवि का उदाहरण है। २. मीलित
भेद लष्यौ नहिं जाय सुकवि जहां साद्रस्य तें।
मिलत न जान्यौं जाय अलंकार लंकार विद ।। यथा- लाल कंचुकी बाल के हिय में गई मिलाय ।
अंग लाली में लाल जू लाली लषी न जाय ।। पुस्तक के संबंध में कहा गया है
शशि कुल मंडल मंडलीक बलवंतसिंघ हित ।
अलंकारमंजरी करी कवि राम जथा मति ।। इस पुस्तक के पढ़ने का फल-----
जो गुनि तें यह पढ़े बढ़े, तिहि की मति जानों। अलंकार विद होय, होय जिन संस पठानों ।। मानों प्रवान यह में सदा, मृदा होय चित दीजिए।
कीनों कवित्त चहै मित्र जों, तें अब बिलम न कीजिए ।। २. छंदसार- यह पुस्तक भी इन्हीं राम कवि द्वारा महाराज बलवंतसिंहजी के लिए लिखी गई है। इसका निर्माणकाल भी संभवतः अलंकार मंजरी के आसपास रहा होगा । पुस्तक के अंत में पुस्तक, प्राश्रयदाता और कवि के नाम दिए गए हैं___ 'इति श्री छंदसारे श्री मन्महाराज श्री सवाई ब्रजेन्द्र बलवंतसिंह हेतवे राम कवि विरचिते मात्रा प्रस्तारादि वर्णनों नाम षष्टमो सर्गः ।
छंदसार समाप्तोयं ।'
'यदुकुल चंद्रवंशी' भरतपुर के राजाओं के लिए प्रयुक्त होता है। बलवंतसिंह 'चंद्रकुल मंडल मंडलीक' कहे गए हैं। वैसे ये जाट राजा थे।
पुस्तक का नाम ।
३ रचयिता का नाम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org