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________________ ६८ अध्याय २ - रीति-काव्य वीभत्स में भयानक का दर्शन कीजिए अस्त्र-बली वषतेस बहादुर, सस्त्रन सौं रन सत्रु संहारे । लोथिन प्रेत लथे रत रेत में, लोहू के खेत में जात पनारे । आई विसाल वरंगना बाल ये, चामचमात विताल निहारे । देषि भजी विकरारे मरे, चहू डारै गयंद भयंकर भारे । रस के विभिन्न अंगों का वर्णन करते हुए, कवि भोगीलाल ने नायिका भेद वर्णन विस्तृत रूप में किया है। कविता की दृष्टि से भी इस कवि का स्तर बहुत ऊंचा है। शृंगारिक रचनाओं में ये कुछ अधिक शृंगारिक हो गए हैं। व्याख्या की उत्तमता के विचार से तो नहीं किन्तु कवि ने जिस वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण किया है उसके विचार से हम इन्हें प्राचार्यत्व की श्रेणी में ले सकते हैं। सिखनख-की ओर भी कवियों का ध्यान गया। हिन्दी में 'सिखनख' या 'नखसिख' बहुत मिलते हैं। हमें भी अपनी खोज में इस प्रकार के दो विशिष्ट हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त हुए-१. टीका के रूप में तथा, २. स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में। प्रसिद्ध कवि बलभद्र के सिखनख पर मनीराम ने सुन्दर टीका लिखी, और रसानंद ने एक सुन्दर स्वतंत्र ग्रंथ लिखा। बलभद्र का सिखनख हिन्दी में बहुत प्रसिद्ध माना जाता है और साथ ही कठिन भी। इस कठिनाई का ध्यान रखते हुए मनीराम ने बहुत सचेत होकर इस ग्रंथ-रत्न की 'सर्वप्रथम टीका' हिन्दी साहित्य को प्रदान की। अपनी टीका के संबंध में उनका विचार था सिखनख जो बलभद्र कौ, कठिन पदन की रीति। सुगम हौहि इहि साष ते, ग्रंथन की सुप्रतीति ।' अतएव मनीराम द्विज ने इस कठिन ग्रंथ को सुगम करने के लिए इसकी टोका लिखी।' इस ग्रंथ को बहुत प्रौढ़ और परिमार्जित माना जाता है अत: . बीच की पीढ़ियों द्वारा इस प्रकार किया है१. देव २. नवरंग ३. पुरुषोत्तम ४. सोभाराम ५. भोगीलाल देव और भोगीलाल के बीच में तीन पीढियां और हैं, अतएव १००-१२५ साल का समय ठीक ही है। इ देव का जन्म जिस प्रान्त में हुअा माना जाता है उसमें कान्यकुब्ज ही अधिक रहते हैं, सनाढ्य नहीं । अतः देव काश्यप गोत्रीय द्विवेदी कान्यकुब्ज थे। १ बलभद्र मिश्र का जन्मकाल संवत् १६०० वि० माना जाता है । इन्हें कुछ लोग केशवदास का बड़ा भाई मानते हैं, और साथ ही उनका समकालीन । इसमें संदेह नहीं कि बलभद्र मिश्र के बनाये सिखनख का बहुत प्रचार था किन्तु साथ ही यह एक कठिन ग्रंथ भी था। साहित्य के इतिहास में इनके इस ग्रंथ के कई टीकाकारों के नाम मिलते हैं। सबसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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