________________
मत्स्यप्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
६७
४. प्रत्येक दृष्टि से यह पुस्तक बहुत संयत और स्पष्ट है । देव के वंशज होने के नाते इनके परिवार की काव्य-परम्परा उत्कृष्ट कोटि की थी और इसी प्रकार का काव्य 'वर्षात विलास' में मिलता है । रस का प्रकरण भी बहुत सुन्दर बन पड़ा है । नायिका के विभिन्न रूप भी देखने योग्य हैं ।
उदाहण के लिए प्रौढ़ा नायका देखिए
सोहै सुरंग उरोज उतंगनि, अंगनि गनि भूषन सौं लसि । आए लला पगे कामकलानि, हुई छतिया के छलानि कहू कसि ॥ जौबन भार सौं प्रालस सौं गसि । फेरि दूं गचल हेरि रही हंसि ||
भोग कही न परै जौ लही तिय, रोकत हाथ बनौं नहीं नाथ को, और भी
हग करें नासौं नाहि चलै नहीं चाह भरी चलि जावं । कंचुकी तें पकरे कुचके उचकी पर पैं उर त्यों उचकावै ॥ हाहा करें मुष चूमत बाल भुके भिभकै चित में ललचावें । छैल ते ऐन छिनो छुटि जावे न बैननि हो नटि नैन नचावै ॥
५ कवि का नाम
कवि पंडित द्विज बरनि कों, नृप दीने बहु दान तिन में भोगीलाल को, सरस कियो सनमान ॥ निरषि भूप को धर्मरत, सकल रसनि में ज्ञान । वखत विलास रच्यो सरस, भोगीलाल सुजान । ६ कवि के पूर्वज -
कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल, कान्यकुब्ज कमनीय । देवदत्त कवि जगत में, भये देव रमणीय ||
ये देव कौनसे हैं ? कवि ने इनके संबंध मे लिखा है
जिनसौं बोली भगवती,
प्रसन्न प्रत्यक्ष ।
कविवर पूज्य तुम, अवनि प्रधीस समक्ष ||
इससे विदित होता है कि ये देव कविशिरोमणि महाकवि 'देव' ही थे । किन्तु एक बात विचारणीय है । देव को विद्वान लोग प्रायः सनाढ्य ब्राह्मण मानते हैं, शुक्ल और दास दोनों ने इसी का समर्थन किया है । डॉक्टर नगेन्द्र देव को कान्यकुब्ज मानते हैं और हम इन्हीं के पक्ष का समर्थन करते हैं क्योंकि -
•
प्र. भोगीलाल ने इन 'देव' कवि को अत्यन्त उच्च कोटि का कवि लिखा है जो महाकवि देव के संबंध में लिखा जाना उचित ही है ।
Jain Education International
प्रा. देव का जन्म समय १७३० वि० के लगभग माना जाता है । भोगीलाल ने यह पुस्तक संवत् १८५६ में लिखी । इस तरह देव और मांगीलाल के बीच में लगभग १००-१२५ साल का समय आता है । इस समय का स्पष्टीकरण कवि भोगीलाल ने
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org