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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
११ सखीजन १२ करूना १३ सखीजन कर्म कथा १४ हास्य रस १५ कवित्त वृत्ति
१६ अनरस लक्षण यह पुस्तक शृंगार रस से संबंधित प्रायः सभी विषयों से पूर्ण है।' पुस्तक के प्रारम्भ में बूंदी 'बिंदवती' का वर्णन किया है
सब भूपति बंस सिरै अवतंस सदासिव अंस नरिंदवती । महिमानत हिम्मति हिम्मतिकी हर किम्मति की हद हिंदवती। सुख सौं सरसी सरसी सरसी सरसीरुह सौरभ वदवती।
गुण सौं अगरी सगरी नगरी अधिराज बिराजत बिंदवती ॥ इस पुस्तक के अंत की पंक्तियां इस प्रकार हैं----
बाल बंदि पतिसाहि कौं, हुकम पाइ बहु भाइ । को ग्रंथ रस माधुरी, सुकवि कलानिधि राइ । संवत सत्रह सै वरष, उनहत्तरि के साल । सांवन सुदि पून्यौं सुदिन, रच्यो ग्रंथ कवि लाल । छत्र महल बूंदी तषत, कोरि सूर ससि नूर ।
बुद्ध बली पतिसाहि के, कीनौं ग्रन्थ हजूर ।। पुस्तक के कुछ प्रसंग देखिएनववधू
अंसी अवनी के मांहि देषी सुनी कहूं नाहि काहू पूरे पुन्यन तैं पाई भले सौंन मैं । सौंने की सी छरी लाल हीरौं कैसी लरी अंग अंग रंग भरी अति आनद के हौंन मैं ।। गौंने आई भोरी गुन गोरी विज्जु डोरी किसोरी बरजोरी बतराति रही भौंन में। एहो नद नंद मुष मंद मुसिकानि भए कोरी चंद चांदनी सी फैली भौंन भौंन मैं॥
१ यह हस्तलिखित प्रति बहुत सुन्दर है । प्रारम्भ से अंत तक एक ही प्रकार की स्पष्ट और
सुन्दर लिपि है। प्रत्येक पृष्ठ पर चारों ओर काले, लाल और पीले रंग का तिरंगा हाशिया है।
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