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अध्याय २ -- रीति-काव्य शृंगार-रस-माधुरी के अंत में लिखा है
'इति श्री रावराजा बद्धसिंघजी आज्ञा प्रवर्तक श्री कृष्ण भट्ट विरचितायां शृंगार रस माधुर्या षोडस स्वादः ।' इसी प्रकार दूसरी पुस्तक के अंत में लिखा है
'इति श्रीमनमहाराज भोगीलाल वचनाज्ञा प्रवर्तक कवि कोविद श्री कृष्ण कवि लालनिधि विरचते अलंकार कलानिधौ रस-ध्वनि-निरूपणं नाम पंचमो कला ।'
शृगारमाधुरी राजा बुद्धसिंह की प्राज्ञा पाकर लिखी गई। कवि के साथ यह कृति भी भरतपुर आई और प्रचार पाकर यहां के साहित्य में सम्मिलित हो गई । इस पुस्तक की हस्तलिखित प्रति में १६३ पत्र हैं और बहुत सुंदर लिपि में लिखि हुई पूर्ण पुस्तक है । इसमें १६ स्वाद हैं-शृंगार की माधुरी १६ प्रकार के स्वादों में चखाई गई है। १ शृंगार
छंद संख्या २३ २ विभाव लक्षण ३ नायका भेद वर्णन ४ दरसन लछनं शृंगार रस माधुर्य ५ नायका चेष्टा वर्णन ६ भाव लक्षण ७ अष्ट नाइका वर्णन ८ विप्रलंभ शृंगार ह मान लक्षण १० मान मोचन
[ पृष्ठ ५६ का शेष ] शासक महाराजकुमार प्रतापसिंहजी ने इनको बहुत सम्मान के साथ रखा। इस बात का कवि ने भी स्थान-स्थान पर संकेत किया है, जैसे युद्धकाण्ड में
ब्रज चक्रवर्ति कुमार गुन गन गहर सागर जानई ,
श्री रामचरण सरोज अलि परतापसिंह विराजई । इप्ती नाते कलानिधि को मत्स्य प्रदेश के कवियों में गिना गया है और इनकी पुस्तकों को
भी इसी दृष्टि से यहां के साहित्य में स्थान दिया गया है । १ "श्री कृष्ण कवि लालनिधि" ये सारी बातें “कलानिधि” के साथ जुड़ कर इस कवि के
व्यक्तित्वकी एकता प्रमाणित कर रही हैं ।
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